Book Title: Anekant 1954 09
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Jugalkishor Mukhtar

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Page 19
________________ किरण ३] कर अजितनाथका जीवन परिचय दिया हुआ है। जिसकी पत्र संख्या ७२ और १० संधियों की श्लोक संख्या २२०० श्लोक जितनी है । इस ग्रन्थके कर्ता कवि विजयसिंह हैं, परन्तु इनका परिचय मुझे अभी ज्ञात नहीं हो सका । यह ग्रंथ भव्य कामीरायके पुत्र देवपालके लिये लिखा गया है । ५. मार्गोपदेश श्रावकाचार — यह संकृत भाषाका साल संध्यात्मक ग्रन्थ है जिसकी पत्र संख्या १४ है, १२व पत्र इसका अनुपलब्ध है, श्लोक संख्या ३३४ है, जिनमें से ३७६ श्लोक मूलग्रन्थके हैं, शेष पद्य ग्रन्थकर्ताके परिचयको लिये हुए हैं इस प्रन्यके कर्ता जिनदेव हैं। यह ग्रन्थ भट्टारक जिनचन्द्र के नामांकित किया हुआ है । ग्रन्थका मंगलपद्य निम्न प्रकार है: नत्वा वीरं त्रिभुवनगुरं देवराजाधिवंद्य, कर्माराति जयति सकलां मूल संघे दयालु । ज्ञानैः कृत्वा निखिलजगतां तत्त्वमादीषु वेत्ता, धर्माधर्म कथयति इह भारते तीर्थराजः ॥१॥ ६. अपभ्रंश कथा संग्रह- इसमें तीन कथायें दी हुई हैं जिनमें प्रथम कथा रोहिणी व्रत की है, जिसके कर्ता मुनि देवनंदी हैं। यह ग्रन्थ आमेर भंडारादिके गुच्छकों में भी । दूसरी कथा, दुधारसिनरक उतारी नाम की है जिसके कर्ता विजयचन्द मुनि हैं। तीसरी कथा सुगन्ध दुशमी नामकी है जिसके कर्ता सुप्रभाचार्य हैं। ७. योगप्रदीप - यह संस्कृत भाषाका ग्रन्थ है जिसके कर्ता संभवतः सोमदेव जान पड़ते हैं। इसका विशेष विचार ग्रंथ देख कर किया जा सकता है। ८. अज्ञात न्याय ग्रन्थ - यह न्याय शास्त्रका एक छोटा सा ग्रन्थ है जो परीक्षामुखके बादकी रचना है, रचना सरल और तर्कणा शैलीको लिये हुए है । Jain Education International [ ८३ ६. चौवीस ठाणा - ( प्राकृत) यह ग्रंथ सिद्धसेनसूरी कृत है। इसमें चौबीस तीर्थकरों के जन्मादिका वर्णन गाथाबद दिया हुआ है । यह कृति भी एक गुटके में संनिहित है । १०. अहोरात्रिकाचार - यह ग्रन्थ पं० प्राशावरजी कृत है जिसकी श्लोक संख्या ५० बतलाई गई है और जो एक गुरुक में संगृहीत है। ११. हंसा अनुप्रेक्षा - इस ग्रन्थके कर्ता अजितब्रह्म हैं। १२. नेमिचरित - ( अपभ्रंश ) महाकवि पुष्पदन्त कृत यह प्रन्थ भी एक गुच्छकमें संकलित है । इस चरित ग्रन्थको देख कर यह निश्चय करना चाहिये कि यह पुष्पदन्तकी स्वतन्त्र कृषि है या महापुराणन्तर्गत ही नेमिनाथका चरित है । १३. अमृतसार - यह प्रम्थ ४ संधियोंको लिये हुए है। १४. षट् द्रव्यनिर्णयविवरण १५. गोम्मटसार पंजिका - यह जीवकाण्ड कर्मकाडकी एक संस्कृत प्राकृत मिश्रित पंजिका टीका है जिसके कर्ता मुनि गिरिकीर्ति हैं । इस ग्रन्थका विशेष परिचय बादको दिया जायगा । १६. श्रुतभवनदीपक - यह भट्टारक देवसेन कृत संस्कृत भाषाका ग्रंथ है । १७. रावण- दोहा - प्राकृत (गुच्छक में ) १८. कल्याणविहाण - ( अपभ्रंश ) इस ग्रन्थ भण्डारमें वे सब ग्रंथ भी विद्यमान हैं जो दूसरे भंडारोंमें पाये जाते हैं। कुछ प्रन्थोंकी मूल प्रतियाँ भी उपलब्ध हैं, यथा— सोमदेवाचार्यका यशतिलकचम्पू मूल, गोम्मटसार कर्मकाण्ड मूल, ( यन्त्र रचना सहित) सिद्धान्तसार प्रा० ( यन्त्र रचना सहित ) राजवार्तिकमूल, और अमरकोशकी टीका सीर स्वामिकृत मौजूद है । - परमानन्द जैन मंगल पद्य सवैया इकतीसा वंदू वद्धमान जाको ज्ञान है समन्तभद्र, गुण अकलंक रूप विद्यानन्द धाम है । जाको अनेकान्तरूप वचन अबाध सिद्ध, मिथ्या अन्धकारहारी दीप ज्यों ललाम है ॥ भव्यजीव जासके प्रकाश तैं विलोके सब, जीवादिक वस्तुके समस्त परिणाम हैं । वर्तो जयवन्त सो अनन्तकाल लोक मांहि, जाको ध्यान मंगल स्वरूप अभिराम हैं । For Personal & Private Use Only — कविवर भागचन्द www.jainelibrary.org

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