Book Title: Anand Pravachan Part 05
Author(s): Anand Rushi, Kamla Jain
Publisher: Ratna Jain Pustakalaya

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Page 336
________________ आनन्द प्रवचन | पांचवां भाग किवाड़ बन्द करके सो जाय तो उसे कितनी हानि होगी? इसी प्रकार प्रतिदिन तो आप कुछ करते हैं या नहीं ठीक है, पर इन पर्युषण के दिनों में भी अगर चूक गये, कुछ नहीं किया तो आपको भी कितना नुकसान होगा, आपको इसका अन्दाज है ? अगर है, तो फिर मन, वचन एवं शरीर से जो कुछ भी त्याग-तप बन सके, करने का प्रयत्न कीजिये । शास्त्रकारों ने तप का बड़ा महत्व बताया है। श्री उत्तराध्ययन सूत्र में कहा गया है - "भवकोडी संचियं कम्मं तवसा निज्जरिज्जइ ।" -साधक करोड़ों भवों के संचित कर्मों को तपस्या के द्वारा क्षीण कर देता है। इसलिये प्रत्येक आत्म-हिताकांक्षी को तपस्या करना चाहिए। हमारे मगन मुनि जी ने स्वास्थ्य नरम होने पर भी इकतीस दिनों के व्रत किये है । इनके साथ भी चार, तीन या जिससे जितना बने करो तो आपकी आत्मा को लाभ होगा। यह मैं अपनी ओर से कहता हूँ । आप कह सकते हैं कि --'हमें तो उपदेश दे रहे हैं पर आप स्वयं क्यों नहीं करते।' पर यह कोई बात नहीं है। मुझसे जो बनता है, मैं करता हूँ और आपसे जो बने आप करें । मैं एकासन करता हूँ। संत उसके लिए भी मना करते हैं स्वास्थ्य के कारण। किन्तु मेरा कहना है कि जब तक बनता है करूंगा : चन्द्रऋषि जी भी कर रहे थे पर उनका स्वास्थ्य खराब हो गया तो पारणा करना पड़ा । पर तबियत ठीक होते ही इन्होंने पुनः उपवास प्रारम्भ कर दिए हैं । आपको भी इन दिनों में यथाशक्य तप करना चाहिए । तप से मेरा आशय केवल उपवास, बेले, तेले या अठाई आदि से भी नहीं है। केवल अनशन ही तप में नहीं आता। इसके अलावा भी वैयावृत्य, स्वाध्याय, ध्यान, पापों के लिए प्रायश्चित, विनय आदि तप के जो बारह प्रकार हैं, उनमें से जो भी आपसे बन सके और जितनी मात्रा से बनें, सभी उत्तम हैं तथा निर्जरा के कारण हैं। अतः अपनी शक्ति और सामर्थ्य के अनुसार आप जो भी करें वह आत्मा के लिए उपयोगी है। सच्चा साधक वही है जो मलिन और हीन भावनाओं को मानस में से निकालकर उनके स्थान पर विशुद्ध भावनाओं को प्रतिष्ठित करे तथा आत्मा की ज्योति को जगाए । जो भी व्यक्ति ऐसा करेगा, वह किसी न किसी प्रकार का तपाचरण स्वतः ही कर सकेगा। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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