Book Title: Anand Pravachan Part 05
Author(s): Anand Rushi, Kamla Jain
Publisher: Ratna Jain Pustakalaya

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Page 335
________________ स्वागत है पर्वराज ! इन्हें देखकर बड़ा हर्ष हुआ है कि ये अपनी आत्मा का कल्याण करने की इच्छा रखती हैं । मैं आशीर्वाद देता हूँ कि ये सब जिन भगवान के द्वारा बताये हुए मार्ग पर बढ़ें और अपने भविष्य को सर्वाङ्ग सुन्दर बनाएं। . हम संत तो सदा ही प्राणीमात्र के कल्याण की भावना रखते हैं तथा भगवान के बताए हुए मार्ग को समझाते हैं । अब इस पर कोन चलता है और कौन नहीं, यह ध्यान रखना हमारा कार्य नहीं है। जिस प्रकार एक इंजीनियर सड़क बनवा देता है तथा वहाँ रही हुई ऊँची-नीची जगहों को समतल कराकर चलने योग्य कर देता है। किन्तु उसके बनवाए हुए मार्ग पर कौन चलता है और कौन नहीं, इसका हिसाब वह नहीं रख सकता। तो बंधुओ ! हम आपको जिनवाणी के अनुसार दान, शील, तप एवं भाव से युक्त मार्ग आपको सुझाते आ रहे हैं और भरसक सुझाते रहेंगे। पर इन मार्गों पर चलना आपको है और आप कितना चलते हैं, इसका हिसाब आपको ही रखना है। यह जीवन बार-बार मिलने वाला नहीं है। ऐसा सर्वश्रेष्ठ अवसर पाकर भी अगर आप धर्मकार्यों से उदासीन रहे तो फिर कौन सी योनि में आप यह कर सकेंगे ? सांसारिक कार्यों के प्रति तो आप सदा जागरूक और उत्साही बने रहते हैं। विवाह करने जाते समय यह नहीं कहते कि हमें नींद आ रही है, लक्ष्मी तिलक करने आए तो भी यह नहीं कहते कि मुंह धोकर आते हैं अभी तुम ठहरो, इसी प्रकार रात्रि को बारह बजे तक भी बहीखाते देखते हैं तो पूर्ण रूप से सजग रहते हैं कि कहीं कोई अंक गलत न लिख जाय । । परन्तु यहाँ प्रवचन सुनते समय और सामायिक करते समय आपको नींद आने लगती है और झोंके खाते-खाते क्या सुना और क्या नहीं सुना इसका ध्यान नहीं रहता। यह क्यों होता है ? इसलिये ही कि इन कार्यों के प्रति आपके हृदय में उत्साह और लगन नहीं है । इनके प्रति आपकी उदासीनता है । पर भाइयो ! ऐसे काम कैसे चलेगा ? आपको धर्माराधन भी अन्य सांसारिक कार्यों के समान ही जागरूक रहकर हमेशा करना चाहिये । और हमेशा पूरी तरह नहीं कर सकते तो इस पर्युषणपर्व के शुभ अवसर पर तो सांसारिक प्रपंचों को छोड़ ही देना चाहिए । आप यह विचार करें कि ये दिन गांवों में लगने वाले हाटबाजारों के समान मुख्य और अधिक विशेषता लिए हुए होते हैं। अगर गाँव का व्यक्ति हमेशा तो अपनी दुकान खोले रहे पर हाट के दिन Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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