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आनन्द प्रवचन | पांचवां भांग
समाज करोड़ों की संख्या में था किन्तु समाज ने उनका संरक्षण नहीं किया और इसके फलस्वरूप आज जैनियों की संख्या काफी कम हो गई ।
___ आपके यहां नोगपुर में भी जैनकलार जाति थी। वे जैन शब्द अब भी अपने लिये लिखते थे किन्तु धर्म को नहीं मानते। उनका खान-पान भी अब काफी दूषित हो गया है । भक्ष्याभक्ष्य का वे खयाल नहीं करते । तो, ऐसे व्यक्तियों को पुनः धम में दृढ़ करना भी आपका कर्तव्य है। उन्हें आपको प्रेम से तथा हृदय की सम्पूर्ण सरलता से समझाकर सही मार्ग पर लाना है।
आपमें से कुछ भाई कभी-कभी कहते हैं कि प्रतिदिन व्याख्यान सुनने से क्या लाभ होता है ? इस विषय में शास्त्रों में बताया जाता है कि जिसका पुण्योदय होगा, वह उतना लाभ उठाएगा। अरे भाई ! अगर सो सुनने वाले बैठे हैं, और उनमें से एक भी कुछ ग्रहण करता है तो क्या नुकसान है ? इसके अलावा हमारे लिए तो प्रवचन देना स्वाध्याय-तप ही है । हमारा क्या बिगड़ता है चाहे कोई भी उसे ग्रहण न करे।
सच्चे महाजन बनो
बंधुओ ! आप लोग महाजन कहलाते हैं, वह इसलिए कि आपके पूर्वज सार्थवाह और महान् जन थे । महाजन कहलाना गौरव की बात है किन्तु केवल पूर्वजों के महान कार्यों से ही आप अपने आपको महाजन समझकर गौरवान्वित अनुभव करें तो यह बात ढोल में पोल के समान होगी । हां, आप स्वयं अपने उत्तम कार्यों से महाजन बनें तो वह आपका उपार्जित धन और आपके लिए सही पदवी होगी।
- कवि कहता है-भाई, तुम महाजन कहलाकर जग-हंसाई मत कराओ। यह कथन यथार्थ है। आखिर पूर्वजों के यश की खाल कबतक ओढ़ी बायेगी। अब वह जर्जर हो चुकी है अतः अब भी समय है, कि आप स्वयं अपने सद गुणों से, उत्तम कार्यों से तथा दान, सेवा और परोपकार से नव-निर्माण करें तथा कीर्ति, यश और आगे के लिए पुण्य-संचय के रूप में कुछ स्वयं उपाजित करें। .. अपने पहनने के वस्त्र तो आप नित्य नए सिलवाते हैं, यहाँ तक कि बाप-दादों के समय की वस्तुओं को, वस्त्रों को और मकानों तक को आधुनिक समय के अनुकूल न मानकर बदल देते हैं और सभी कुछ नया बनवाते तथा खरीदते हैं। तो फिर महाजन-रूपी पदवी या वस्त्र नाम-मात्र का रह जाने पर भी क्यों नहीं अपने बाहुबल से, बुद्धि से, विवेक से तथा आत्म-विश्वास आदि से नया नहीं बनवाते ? आप लोग कहा तो करते हैं कि पूर्वजों का धन चाहे कुबेर जितना भी क्यों न हो,
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