Book Title: Amar Kshanikaye
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sugal and Damani Chennai

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Page 52
________________ Jain Education International ज्योतिर्मयी नारी, तेरी गरिमाओं के शुष्क न दिव्य स्रोत ये होंगे । तेरी महिमाओं के उज्ज्वल, कभी न धूमिल तारे होंगे ।। सरस्वती तू, लक्ष्मी तू है, चण्डी तू है, सदा शिवानी | शिव-संवर्धक, अशिव नाशिनी, तेरी लीला जन-कल्याणी ।। मन विराट तव नभ मण्डल - सा तू देवी मृदुकरूणा की है । दिव्य मूर्ति तू पुण्य योग की नहीं मूर्ति अघ - छलना की है ।। तू बदले तो घर बदलेगा, जग बदलेगा, युग बदलेगा I जीवन के निर्माण मार्ग पर स्वर्ग हर्ष गद्गद् उछलेगा || तुझे राक्षसी कहा किसी ने, भूल गया वह पथ यथार्थ का । अपनी दुर्बलता, कुण्ठा का, डाला तुझ पर भार व्यर्थ का ।। प्र 43 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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