Book Title: Amar Kshanikaye
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sugal and Damani Chennai

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Page 60
________________ श्रध्दा - सुमन आदिदेव है ऋषभ जिनेश्वर, ज्ञान-ज्योति का तू दिनकर । प्रथम प्रकाश उतारा तूने, तमसावृत्त इस धरती पर ।। भूख- भूख का गूंज रहा था, कितना दारूण भीषण स्वर । कर्मयोग का तब तूने ही, दिया बोध जग - मंगलकर ।। पुण्यकर्म वह जिसके अन्दर, Jain Education International सुरभित हो जन-जन का हित । तेरा यह सन्देश आज भी, धरा स्वर्ग तक अभिनन्दित || तू सबका था, सब थे तेरे, एक दृष्टि थी समरस की । अतः चिरन्तन वेदों तक में, गूंजित गाथा तब यश की ।। नग्नदेह हिमगिरि - शिखरों पर, ध्यान धरा अविचल तूने । सोया अन्तर जिनवर जागा, पाया निज में जिन तूने ।। 51 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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