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भूलें स्वर्ग, धरा के सुख-दुःख, भूलें अन्य सभी अभिमान । भूलेंगे न कभी भी तुझ से,
उदय हुआ जो स्वर्ण विहान ।।
अपना ईश्वर तू ही खुद है,
जाग, जाग रे मानव जाग ।
जागा शिव है, सोया शव है,
त्याग, त्याग तम - निद्रा त्याग ||
अपना भाग्य हाथ में तेरे,
भला-बुरा जो भी है काम । कर सकता है, रोक न कोई,
रावण बन अथवा बन राम ।।
प्राणीमात्र में परमेश्वर का,
सुप्त अनन्तानन्त प्रकाश । दीन-हीन मानव में जागृत,
तू ने किया आत्म-विश्वास ।।
देव-लोक में नहीं सुधा है,
सुधा मिलेगी धरती पर ।
मधुर भाव के सुधा पान से,
तृप्ति मिलेगी जीवन-भर ||
कटुता का विष जो फैलाये,
वह मानव है अधम असुर । देव वही है मधुर भाव से, पूरित जिसका अन्तर उर ।।
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