Book Title: Amar Kshanikaye
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sugal and Damani Chennai

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Page 61
________________ भौतिक वैभव दिया, दिया फिर, अक्षय आध्यात्मिक वैभव । अभय दान का परम देव तू, भूलेंगे न तुझे भव-भव ।। कर्म क्षेत्र के धन्य वीर थे, जो पहले आगे आते हैं । पीछे तो लाखों अनुयायी, बिना बुलाये आ जाते हैं ।। कल क्या थे, यह नहीं सोचना, सोचो अभी बनोगे क्या ? ले अतीत से उचित प्रेरणा, निज भवितव्य घड़ोगे क्या ? संकल्पों से उठता मानव, और उन्हीं से गिरता है। अच्छे और बुरे भावों का, जग में मेला भरता है । कैसी भी स्थिति आये-जाये, भाव नहीं गिरने देना । शुभ की ज्योति बड़ी है जग में, इसे नहीं बुझने देना ।। अच्छा होगा, सब-कुछ अच्छा, अच्छा है यदि अर्तमन । शुभ मन पर आधारित वाणी कर्मों का सब अच्छापन ।। 52 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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