Book Title: Amar Kshanikaye
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sugal and Damani Chennai

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Page 55
________________ दीक्षा स्वयं पर स्वयं का शासन स्वयं पर स्वयं का नियंत्रण, सद्गुरू मात्र साक्षी है, पथ का भोमिया है, शेष सब-कुछ शिष्य पर ! जगाता गुरू है, कर्ता-धर्ता शिष्य है । श्रद्धा का घृत, ज्ञान की बाती, कर्म की ज्योति, यही है दीक्षा का मंगल दीप, जिसकी स्वर्णिम आभा से हो जाता तमसावृत अन्तर, ज्योतिर्मय अक्षय अजरामर ! शत्रु-मित्र में यश-अपयश में हानि-लाभ में सुख में दुःख में सहज तुल्यता समरसता ही दीक्षा का सत्यार्थ बोध है इसीलिए दीक्षा का सत्पथ नहीं नरक लोक को जाता नहीं स्वर्ग लोक के प्रति ही 46 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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