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पुरूषार्थ
जीवन सेज नहीं सुमनों की, सो जाओ खर्राटे मार |
जीवन है संग्राम निरंतर,
प्रतिपद कष्टों की भरमार ।।
कहीं बिछे मिलते हैं काँटें, कहीं बिछे मिलते हैं फूल ।
जीवन-पथ में दोनों का ही स्वागत, दोनों ही अनुकूल ।।
जीवन- नौका का नाविक है,
एक मात्र पुरूषार्थ महान् ।
सुख-दुख की उत्ताल तरंगें,
-
कर न सके उसको हैरान ||
gode
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