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ज्योतिर्मयी
नारी, तेरी गरिमाओं के शुष्क न दिव्य स्रोत ये होंगे ।
तेरी महिमाओं के उज्ज्वल,
कभी न धूमिल तारे होंगे ।।
सरस्वती तू, लक्ष्मी तू है,
चण्डी तू है, सदा शिवानी |
शिव-संवर्धक, अशिव नाशिनी, तेरी लीला जन-कल्याणी ।।
मन विराट तव नभ मण्डल - सा तू देवी मृदुकरूणा की है ।
दिव्य मूर्ति तू पुण्य योग की
नहीं मूर्ति अघ - छलना की है ।।
तू बदले तो घर बदलेगा,
जग बदलेगा, युग बदलेगा I
जीवन के निर्माण मार्ग पर
स्वर्ग हर्ष गद्गद् उछलेगा ||
तुझे राक्षसी कहा किसी ने,
भूल गया वह पथ यथार्थ का ।
अपनी दुर्बलता, कुण्ठा का, डाला तुझ पर भार व्यर्थ का ।।
प्र
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