Book Title: Ahimsa Tattva Darshan
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 2
________________ दो दशक भी पूरे नहीं हुए हैं। जन-साधारण के लिए तेरापंथ और आचार्य भिक्षु अज्ञेय थे। जो कुछ श्रेय था वह भी भ्रमपूर्ण । आचार्यश्री तुलसी इस स्थिति को बदलने में संलग्न थे। वे आचार्य भिक्षु के दृष्टिकोण को युग की भाव-भाषा में प्रस्तुत कर रहे थे। आचार्यश्री की वाणी में नये तर्क थे, नवीन पद्धति भी और स्पष्टोक्ति का नया प्रकार था। प्रतिपादन की इस पद्धति ने दूसरे लोगों को विस्मय में डाल दिया। वे अश्रुत को सुन रहे हों, वैसा मान रहे थे। कुछ तेरापंथी भी अपने को सम्हाल नहीं सके । इस स्थिति में यह अपेक्षा हुई कि एक दोहरा उपक्रम किया जाए-जो तेरापंथ के अनुयायी नहीं हैं उनके लिए जैनागम सूत्रों के व अन्यान्य विचारकों के माध्यम से आचार्य भिक्षु का दृष्टिकोण प्रस्तुत किया जाए और जो तेरापंथी हैं उनके लिए आचार्य भिक्षु की वाणी ही प्रस्तुत की जाए। इस भित्ति पर 'अहिंसा तत्त्व दर्शन' के दो खण्ड बन गये। अहिंसा कोरा विचार नहीं है। मूलतः वह आचार है । आचार के साथ उतना न्याय नहीं होता जितना विचार के साथ होता है। विचार से अधिक यदि आचार न हो तो कम-से-कम इतना अवश्य हो कि विचार से कम आचार न हो। तीसरा खण्ड आचार पक्ष से संबंधित है। इस दृष्टि से यह पुस्तक अपने आप में पूर्ण है।

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