Book Title: Agamoddharak Kruti Sandohasya Part 07
Author(s): Manikyasagarsuri
Publisher: Mithabhai Kalyanchandji Pedhi

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Page 42
________________ सूत्री // 38 // // 32 // सानुबन्धानि चातः स्युर्वराणि श्रेष्ठभावतः। फळेन्नियमतः सम्यक्, प्रयुक्तमिव चौषधम् // 32 // पुण्यं शुभफलं च स्यादतो हित्वा निदानकम् / एतत्कार्य निरोधोऽतः, शुभानां बीजमुत्तमम् // 34 // प्रणिधानं सदा पाठ्यं, श्रोतव्यं भाव्यमेव च। नमो नतनतेभ्योऽहंद्वीतरागेभ्य आईताः // 35 // शेषेभ्यो नमनीयेभ्यो, जीयात् सर्वज्ञशासनं / परबोध्या समे सन्तु, जीवाः सौख्ययुजोऽनिशम् // 36 // एवं पापप्रतीघातो. गुणाधानं च जायते। जातायां धर्मसम्पत्तेः, श्रद्धायां तद्गुणान् स्मरेत् // 37 // प्रकृत्या सुन्दरः प्रेत्य-फलः परोपकारकः / परमार्थकरो धर्मों, दुःसेव्योम नदारुणः // 38 // महामोहकरो भूयो, दुर्लभस्तेन शक्तितः / विधानेनोचितेनाशु, प्रतिपद्यत तं सुधीः // 39 // निरागसा प्रसानां या, निरपेक्षं बुद्धिपूर्विका / हिंसाऽस्या विरति कन्या-द्यलीकानां च वर्जनम // 40 // चौरंकारकरोऽन्यस्वा-पहारो लोभतस्त्यजेत् / भवेत् स्वदारसन्तुष्टोऽन्यदारान् वा विवर्जयेत् // 41 // परिग्रह मितं कुर्यादेवं सप्तवती परां। स्वीकृत्य पालयेद् यत्नात् , सदाऽऽझाग्राहको भवेत् // 42 // आवाया भावकस्तस्या, अधीनः सा हि कामधुक् / आशा मोहविषे मन्त्री रोषादिज्वलने जलम् // 43 // कर्मव्याधिचिकित्सा, कल्पद्रुः शिवसाधने / त्यजेदधर्ममित्राणां योग, ध्यायेद् नवान् गुणान् // 44 // पापे उदग्रसहकृत् : पापो लोकद्वयापह / अनीतौ वर्तनाद्योगोऽशुभोऽस्मादनुबन्धयुक // 45 // त्यजेल्लोकविरुद्धानि, स्याजनानां कृपापरः। न जातु निन्दयेद धर्म स्वस्याबोधिफलं विदन् // 46 // परेषां दुर्लभो बोधि-रतोऽन्येषां विबाधनं / इत्थमालोचयेन्नातोऽपरोऽनों भवोदधौ // 47 // संसारविपिनेऽन्धत्वं, दुर्वारापायकारणं। दारुणं च स्वरूपेणाशुभानुबन्धसंयुतम् // 48 // सेवेत विधिना धर्मचित्तानन्ध इवेशकान् / वैद्यान् रुग्णो निःस्व ईशान्, भीतश्च नायकं यथा // 49 // नातोऽन्यत्सु. न्दरतर-मित्यन्तः प्रीतियुग्भवेत् / आशायाः कासको ग्राही, अविराद्धा च कारकः // 50 // प्रतिपन्नगुणाईः स्यादाचारे तु गृहोचिते / शुद्धं कुर्यादनुष्ठान, मनो वचश्व शुद्धिकृत // 51 // उपघातकर जह्याद् . गद्य क्लिष्टमनायति / सरम्म चिन्नयनान्य-पीडां जल्पेन दीनताम् // 52 // न स्याद् धृष्टो न सेवेता-भिनिवेशं शुभोदयं / मनः प्रवर्त्तयेमिथ्या, न भाषेत न पैशुनम् // 53 // परुषं नानिबद्धं च, हितमितवाग्वधोज्झितः। न गृहणीयाददत्तं स्वं, नेक्षेत परयोषितः // 54 // अनर्थदण्डविरतः, शुभकायप्रवर्तकः। दाने भोगे परिवारे, निधाने लाभमानतः // 55 // अबाधकः कुटुम्बस्य, गुणकृत्तस्य शक्तितः। भावेन निर्ममः साश्चेद् धमों ज्ञातिपालने // 56 // सर्वे जीवा पृथक् BOOOOOOOOOOOO नया, न भाषेत न पैशुनम् शुभकायप्रवर्तकः / दाने भागालने // 56 // सर्वे जी // 38 // NTPAG, GunratnasuriM.S... Jun Gun Aaradhak Trust

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