Book Title: Agam aur Tripitak Ek Anushilan Part 1
Author(s): Nagrajmuni
Publisher: Concept Publishing Company

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Page 11
________________ प्रकाशकीय राष्ट्रसंत मुनिश्री नगराजजी डी. लिट. अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति के संत एवं साहित्यकार हैं। उनका जीवनदर्शन यही है कि सब धर्म मेरे हैं तथा मैं सब धर्मों का हूँ। यह आदर्श उनकी अपनी धारणा तक ही सीमित नहीं है। प्रायः सभी धर्मों के लोग उन्हें अपना ही धर्म गुरु समझते हैं तथा वे सब धर्मों को अपना ही धर्म समझते हैं। ' यही कारण है कि उन्हें एक जैन गुरु होते हुए भी डी. लिट. ब्रह्मर्षि, योग शिरोमणि, राष्ट्रसंत, आदि गौरव पूर्ण उपाधियां विभिन्न वर्गों व क्षेत्रों से मिली हैं। कहना चाहिए कि वे एक मुक्त चिन्तंक हैं तथा सम्प्रदाय व पंथ की संकीर्ण गलियों से पार होकर धर्म, इतिहास व दर्शन के मुक्त आयतन में पहुंच चुके हैं । हमारी कॉन्सप्ट पब्लिशिंग कम्पनी का सौभाग्य है कि हमें उनके इस गौरव पूर्ण ग्रंथ के प्रकाशन का सौभाग्य मिल रहा है। मुनिश्री की इस महती कृपा के लिए उनके हम परम आभारी हैं । मुनिश्री के पचास से अधिक ग्रंथ अब तक प्रकाशित हो चुके हैं, जिनकी साहित्यिक जगत् में अप्रतिम गरिमा है। मुनिश्री के आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन खण्ड एक का प्रकाशन कर हम अपने आप को गौरवान्वित मानते हैं। कॉन्सप्ट पब्लिशिंग कम्पनी अंग्रेजी मुख्यतः जो ग्रंथों का ही प्रकाशन करती है और अपनी लाइन में उसका अपना कीर्तिमान है। धार्मिक व सांस्कृतिक ग्रंथों का प्रकाशन हम मुख्यतः सेवा भावना से ही करते हैं। वह हमारा व्यवसाय का तथा उससे लाभ अर्जित करने का विषय नहीं होता। हमारा लक्ष्य है, जीवन में स्वार्थ के साथ परमार्थ का भी कुछ सधता रहे। अस्तु, इस दृष्टि से ही हमने इस ग्रंथ का मूल्य व्यावसायिक स्तर का नहीं रखा है। निवेदक १ जून १९८७ दिल्ली नौरंग राय संचालक, कॉन्सेप्ट पब्लिशिंग कम्पनी Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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