Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 10 Author(s): Jinendravijay Gani Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala View full book textPage 7
________________ 4 cii आगमसुधारिसरामो विभाग ज्जत्त शूठहियत्तं, वं विवरीयचित्तथा // 21 // रागो दोसो यमोहो य, मितं घणचिक्कणं। समगणासो तहय, एगेज(संस्सित्तमेव य॥२२॥ आणाभंगमबोही य, ससल्लसाय भवे भरे। एमाही पावसल्लस्स नामे एगठिए बढ़R३॥ जेणां सल्लियहिययस्स, एगस्सी बहु भक्तरे। सब्र्वगोवंगसंधीओ, पसल्लंति पुणो पुणो // 24 // सेय दुविहे समकरवाएर, सल्ले सुमे य बाथरे / एस्केनके तिबिहे णेप, घोरुग्गुग्गतरे तहा // 25 // घोरं चाविहा माथा, घोरू गं माणसंजुथा। माया लोभी यकोहो य, घोरुग्गुग्गयरं मुगे // 26 // सुकुमबायरमेएणं, सप्यभेयंपिमं मुगी। अइरा समुधरे रिवयं सरसल्लो यो से स्वर्ण // 27 // खुइडलगित्ति अहियोए, सिन्थयतुल्ले सिही। संपलणे वयं णेश.वि पुढे विजोडई एवं तणुतणुथरं,पावसल्लमणुनिय। भवभवंतरकीडीओ,बहुसंतावपद भवे // 29 // भयवं सुदुबरे एस, पावसल्ले हप्यए। उधरिपि ण थाणंती, बहवे जहमुदरिद // 30 // गोथम ! निम्मूलमुद्धरणं, णिययमेतस्स भासियं / सुदुद्धरस्सावि सल्लस्स, सवंगोवंगभेदिगो॥३५॥ सम्मटुंसर्ण पठम,सम्मं नाणं विन्जियं। तइयं च सम्मचारितं. एगभूयमिमं तिगं // 22 // श्येत्तीभूतेवि जे जिते (जीए), जे डसणं गए। जे अत्यीसुविधा केई. जेऽस्थिमझभातरं गए // 32 // सधंगोवंगसंखुत्ते जे सहभंतर बाहरे। सल्तंति जेण सल्लंती, लेनिम्मूले समुदरे // 34 // यं नाणं किथाहीणं, या अन्नाणतो किया। पासंतो पंगुलो दइटो, धावमाणो य अंधो // 35 // संजोगसिहदी म उगीथमा! फल, नद एगचक्कण रहो पथा। अंधीयपं य वणे समिच्चा ते संपत्ता नगरं पविदा // 36 // नाणं पथासगं सोहओ तो संजमो य गुत्तिकरो। निग्हपि स.Page Navigation
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