Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 10
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 11
________________ श्रीभागमसुधा सिन्धुः न पारेमि, चलकरठययकेवली / पक्वसुद्धाभिहाणे याचाउम्मासोय केवली // 7 // संवरहरमहपच्छिते, हाचलं जीवियंतहा। अणिध्ये स्थणाविदंसी, मणुफ्ते केवली तहा।।७।। भालोयनिंदवंदिथए, घोरपच्छित्तक्करे। लखोबसपरिधत्ते, समहियासणकवली // 6 // हत्थोसरणनिवासे य, अडकवलासिकेवली। एग सिस्थगपरित्ते, रसवासे केवली तहा // 7 // परिस्ताढवणे चव, परित्तद्धकयकेवली / परिछत्तपरिसम- . तीय, अहसउन्कोसकेवली ॥७॥न सुद्धी विन परिच, ना, ता बरं खिप्यकेवली / एग काऊण परिछतं,बीयं न भवे (जहेव) केवली // 79 // तंचाथरामि परितं, जेणाग के. वली / तं घायरामि जेण तव,समलं होर केवली ॥२०॥कि परिछत्तं चरंतोऽहं, चिठं णो तव केवली / जिणाणमाणं ग लंघेऽहं, पाणपरिचयणकेवली // 1 // भन्नं होही सरीरं मे, नो वोही चेव केवली। सुलदमिणं सरीरेणं, पावणिहण. केवली // 2 // अगाइपावकम्ममलं, निदोवेमीह केवली 1बीयंतंन समाथरिमं, पमाया केवली नहा // 3 // देहे खरोष (बी) सरीरं मे, निज्जरा भवो केवली / सरीरस्स संजमं सारं, निस्कलंक तु केवली ॥renमणसावि स्वरिए सीले, पाणे ण धरामि केवली / एवं वइकाथजोगेणं, सीलं रक्ये अहं केवली // 55 // एनं मया अणाहीथा, कालाणंते पुणो मु. गी। कई आलोयणा सिद्धे, परिधता केई गोथमा NET संता' रंता विमूत्ता य, जिइंरी सच्चभासियो / धक्कायममारंभाउ, बिरसे तिविहेण उ॥७॥तिदंडासवसंवरिया, इत्यिकहासंग वज्जिया। इत्थीसंलावविरयाय अंगोवंगणिरिक्षणात निम्ममता सरीरेलि,अय्यतिबद्धामहायसा / भीथा इत्थिगडभबसहीणं, बहुदुक्रवाउ भवाउनहा // 49 // ता एरिसेणं भावणे, 'दायव्वा आलायणा / पछिपिय काय, तहा जहा चेव महि कथं // 10 // न पुणो तहा भालोएयवं,मायाईभेण

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