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योगोद्वहन सम्बन्धी विविध विधियाँ ...259 'काष्ठासन' शब्द का उल्लेख मिलता है। यद्यपि संघट्टा, आउत्तवाणय, वायणा, पवेयणा आदि आलापक पाठों को लेकर उपर्युक्त ग्रन्थों एवं तपागच्छ आदि परम्पराओं में पूर्ण मतैक्य है।
यदि पवेयणा की उपादेयता पर विचार करें तो यह निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि इसकी अनुपालना करने से जिनाज्ञा का पालन, गुरु का बहुमान एवं अप्रमत्तदशा का जागरण होता है तथा प्रतिपृच्छा पूर्वक सम्पादित अनुष्ठानों के माध्यम से आराधना विधियुक्त बनती है। नोंतरा (कालमंडल प्रतिलेखन) विधि
नोंतरा, यह मरु गुर्जर मिश्रित शब्द है। इसका सामान्य अर्थ होता हैआमन्त्रण देना। यहाँ नोंतरा से तात्पर्य पूर्व निर्धारित निर्दोष भूमि को विशिष्ट विधि-प्रक्रिया के द्वारा सभी योगवाहियों के लिए कालग्रहण के योग्य बनाना है। सामान्यतया काल ग्रहण शब्द में ‘आमन्त्रण' का भाव निहित है, क्योंकि कालग्रहण के माध्यम से सभी योगवाही मुनियों को आगम पठनार्थ आज्ञा दी जाती है, उन्हें शास्त्राभ्यास के लिए मंडली में आमन्त्रित किया जाता है। कालग्रहण विधि एक निश्चित भू-भाग में सम्पन्न होती है, उसे ही काल मंडल कहते हैं। इस प्रकार निर्धारित स्थान विशेष को उत्तम प्रक्रिया के द्वारा कालग्रहण योग्य बनाना नोंतरा कहलाता है।
किसी अपेक्षा से नोंतरा को कालग्रहण की साहचर्य विधि कह सकते हैं क्योंकि कालग्रहण से पूर्व नोंतरा विधि अनिवार्य रूप से सम्पन्न की जाती है। इस तरह जितने कालग्रहण लिये जाते हैं उतनी ही संख्या में नोंतरा विधि की जाती है।
. यह ध्यातव्य है कि नोंतरा, कालग्रहण, कालप्रवेदन, कालग्राही, दांडीधर आदि विधि-अनुष्ठान कालिकसूत्रों के योगवहन में किये जाते हैं। उत्कालिक आदि एवं प्रकीर्णक आदि सूत्रों के योगोद्वाहन में कालग्रहण सम्बन्धी विधिविधान नहीं होते हैं। ___ नोंतरा के सम्बन्ध में यह उल्लेखनीय है कि योग में प्रवेश करने के पूर्व दिन की सन्ध्या को चौविहार आदि का प्रत्याख्यान करके नोंतरा विधि करें। उसके पश्चात कालग्राही और दांडीधर मुनि स्थंडिल प्रतिलेखना (मांडला) करें। सामान्य योगवाही साधु नोंतरा विधि के पूर्व भी स्थंडिल प्रतिलेखना कर सकते