Book Title: Agam Adhyayan Ki Maulik Vidhi Ka Shastriya Vishleshan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith

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Page 426
________________ 368... आगम अध्ययन की मौलिक विधि का शास्त्रीय विश्लेषण दिन | 39 | 40 | 41 | 42 | 43 | 44 45 अध्ययन | 8 | 8 | 8 | 8 | 8 | श्रु.समु. श्रु.अनु.नंदी उद्देशक | 11/12 | 13/14/15/16 17/18 | 19/20 | 0 कायोत्सर्ग | 6 | 6 | 6 | 6 | 8 | 1 तप | आ. | आ. | आ. | आ. | आ. | आ. | आ. • विधिमार्गप्रपा एवं आचारदिनकर में तप क्रम समान हैं। प्रकीर्णक सूत्रों की योग विधि नंदी सूत्र और अनुयोगद्वार सूत्र के योग मंडली में वहन किए जाते हैं तथा इन सूत्रों के उद्देश-समुद्देश-अनुज्ञा के निमित्त नीवि तप करते हैं और इन दोनों के योग दो दिन में लगातार किए जाते हैं। कुछ आचार्यों के मतानुसार नंदीसूत्र और अनुयोगद्वारसूत्र के योग (उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा) तीन दिन में किए जाते हैं और तीनों दिन नीवि करते हैं। • विधिमार्गप्रपा (पृ. 170) के अनुसार 1. देवेन्द्रस्तव 2. तंदुलवैतालिक 3. मरण समाधि 4. महाप्रत्याख्यान 5. आतुरप्रत्याख्यान 6. संस्तारक 7. चन्द्रवैध्यक 8. भक्तपरिज्ञा 9. चतुःशरण 10. वीरस्तव 11. गणिविद्या 12. द्वीपसागर प्रज्ञप्ति 13. संग्रहणी 14. गच्छाचार आदि चौदह प्रकीर्णक सूत्रों के योग एक-एक नीवि द्वारा वहन किए जाते हैं। इस तरह प्रत्येक प्रकीर्णक के योग में एक दिन लगता है और उसमें नीवि तप करते हैं। कुछ परम्पराओं के अनुसार उक्त प्रकीर्णक सूत्रों के योग वंदन, कायोत्सर्ग, मुखवस्त्रिका प्रतिलेखन आदि की विधिपूर्वक भगवती सूत्र के योगोद्वहन के मध्य में कर लिए गए हों तो इन्हें पृथक से वहन नहीं करना चाहिए। • विधिमार्गप्रपा (पृ. 170) के अनुसार द्वीपसागरप्रज्ञप्ति नामक प्रकीर्णक सूत्र के योग तीन कालग्रहण और तीन आयंबिल के द्वारा भी वहन कर सकते हैं। • आचारदिनकर में बीस प्रकीर्णक सूत्रों के योगोद्वहन करने का निर्देश है। इसमें कहा गया है कि ये सभी प्रकीर्णक उत्कालिक सत्र के अन्तर्गत आते हैं तथा अन्य सूत्रों के योग के मध्य नीवि के स्थान पर आयंबिल करके और एक ही दिन में उसके उद्देश-समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया करके वहन किए जाते हैं अर्थात इन सभी प्रकीर्णक सूत्रों के योग में नामोच्चारण पूर्वक उनके उद्देश

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