Book Title: Agam Adhyayan Ki Maulik Vidhi Ka Shastriya Vishleshan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith

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Page 432
________________ 374... आगम अध्ययन की मौलिक विधि का शास्त्रीय विश्लेषण होता है, क्योंकि जिस प्रकार अंग सूत्र के उद्देश के बाद अध्ययन आदि के उद्देशादि पूर्ण कर लेने पर अंग सूत्र का समुद्देश और अनुज्ञा होती है उसी प्रकार अध्ययन का उद्देश करने के बाद उसमें जितने भी उद्देशक आदि हैं, उन्हें पूर्ण कर लेने पर ही अध्ययन का समुद्देश एवं अनुज्ञा करनी चाहिए। जिस दिन अध्ययन या वर्ग की समुद्देश- अनुज्ञा न हो, उस दिन उद्देशकों के उद्देश आदि क्रमशः कर लेने चाहिए। आचारदिनकर में उद्देशक आदि की वाचना का क्रम इस प्रकार कहा गया है - जिस दिन अध्ययन पूर्ण होता हो उस दिन पहले शेष उद्देशकों के उद्देशसमुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया एक साथ कर लें, फिर अध्ययन की अनुज्ञा करें, अथवा एक ही दिन में अध्ययन और उद्देशक पूर्ण होते हों तो पहले अध्ययन के उद्देशादि कर लें, फिर उद्देशक के उद्देश आदि करें, अथवा एक अध्ययन के योग एक से अधिक दिन के हों तो ऐसा भी उल्लेख है कि पहले दिन अध्ययन के उद्देश - समुद्देश एवं अनुज्ञा विधि करें, फिर उस अध्ययन के पहले दूसरे उद्देशक के उद्देशादि करें। दूसरे दिन तीसरे - चौथे उद्देशक के उद्देशादि की विधि करें।25 इस प्रकार उद्देशादि रूप वाचनाक्रम दो-तीन तरह से बतलाये गए हैं। तिलकाचार्य सामाचारी आदि में उद्देशादि ग्रहण करने सम्बन्धी क्रम का सुस्पष्ट उल्लेख नहीं है तथा सुबोधासामाचारी में उद्देश आदि का क्रम विधिमार्गप्रपा के समान ही बताया गया है। कायोत्सर्ग संख्या की दृष्टि से- आगम सूत्रों की योग तप विधि करते समय किस दिन कितनी संख्या में कायोत्सर्ग-वंदना आदि किए जाने चाहिए ? यह उल्लेख स्पष्टत: आचारदिनकर में ही उपलब्ध होता है, विधिमार्गप्रपा में इसके अस्पष्ट संकेत हैं। यदि उद्देशक आदि की संख्या की अपेक्षा विचार किया जाये तो उद्देशकादि रूप वाचनाक्रम में अन्तर होने के कारण कायोत्सर्ग आदि में भी अन्तर आ जाता है। इस दृष्टि से विधिमार्गप्रपा एवं आचारदिनकर दोनों ग्रन्थों में कायोत्सर्गादि को लेकर कहीं-कहीं अन्तर है । किन्तु तपागच्छ की वर्तमान परम्परा में कायोत्सर्गादि की जो संख्या प्रचलित है, वह विधिमार्गप्रपाकार के मत से पूर्ण समानता रखती है। इस विविधता को पूर्वोल्लिखित योग तप विधि के अध्ययन द्वारा सरलता पूर्वक समझा जा सकता है। तपक्रम की दृष्टि से - प्राचीन सामाचारी, तिलकाचार्य सामाचारी, सुबोधा सामाचारी आदि कई ग्रन्थ योग तप विधि का प्रतिपादन करते हैं किन्तु योगोद्वहन

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