Book Title: Agam Adhyayan Ki Maulik Vidhi Ka Shastriya Vishleshan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith

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Page 443
________________ कल्पत्रेप - विधि का सामाचारीगत अध्ययन ...385 किसी विशेष प्रयोजन से गुड़-घृत - तेल- खीर आदि भोजन लाया गया हो तो उस पात्र का अवश्य कल्पत्रेप करें। उसके बाद ही उस पात्र का दुबारा उपयोग करना चाहिए। यदि नारियल आदि के पात्र को घिसने के लिए तेल रखा गया हो और उस तेल में नमक नहीं डाला हो तो वह तेल अशुद्ध - अकल्प्य हो जाता है। शरीर सम्बन्धी- भोजन करके उठने के बाद रजोहरण की दसियों के द्वारा शुद्ध जल ग्रहण करके पहले एक हाथ मस्तक पर रखें और एक हाथ को मुख पर रखकर जल की चार बूँदे ग्रहण करें अर्थात मस्तक से झरता - चूता हुआ पानी मुख पर गिर सके, इस तरह जल बूँदों को ग्रहण करें । यदि स्वादिम वस्तुएँ जैसे सौंफ, इलायची, लोंग आदि के कण मुख में रह गए हों तो पहले जल की चार बूँदों द्वारा मस्तक की शुद्धि करें, फिर अलग से जल की चार बूँदें लेकर मुख की शुद्धि करें। तदनन्तर रजोहरण की दसियों के द्वारा मस्तक पर थोड़ा जल छिड़ककर दोनों कान, दोनों स्कन्ध, दोनों भुजाएं ( कोहनी और स्कन्ध के मध्य का भाग), दोनों कोहनियां, दोनों प्रकोष्ठ (कलाई और कोहनी के बीच का भाग) और हृदय - इन स्थानों की चार-चार बूँदों से शुद्धि करें। उसके बाद पृष्ठ भाग की समग्र रूप से शुद्धि करें। फिर चोलपट्ट (मुनि का अधोभागीय वस्त्र), दोनों जंघा, दोनों घुटने, दोनों पिंडलियाँ और दोनों पाँव- इन स्थानों की चार-चार बूंदों से शुद्धि करें। मंडली स्थान सम्बन्धी - शरीर शुद्धि करने के पश्चात आहार के पात्र आदि एवं आहार स्थान को शुद्ध करने के लिए नियुक्त किया गया साधु अथवा सबसे कनिष्ठ साधु मंडली स्थान पर आए और यदि भूमि मट्ठा-छाछ आदि से खरडी हुई हो तो उसे जल द्वारा शुद्ध करें अथवा धान्य आदि कण बिखरे हुए हों तो उस स्थान की दंडासन से प्रमार्जना करें - इस प्रकार भोजन मंडली की भूमि को स्वच्छ करें। उसे यदि शुद्ध किया गया मंडली स्थान किसी के पाँवों से अशुद्ध हो जाये तो पुनः से शुद्ध करना चाहिए। फिर दंडासन में फँसे हुए धान्यादि कणों को दूर करें। तदनन्तर दंडासन को कील पर टांगकर उस पर बार-बार जल का छिड़काव करते हुए उसकी शुद्धि करें। कल्पत्रेपक मुनि नव दीक्षित, ग्लान अथवा सामाचारी में अकुशल हो तो वह भोजन मंडली की शुद्धि दंडासन के द्वारा ही करे। पैर सम्बन्धी - प्रतिकूल परिस्थिति उत्पन्न होने पर यदि रात्रि में ही स्थान

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