Book Title: Agam Adhyayan Ki Maulik Vidhi Ka Shastriya Vishleshan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith

View full book text
Previous | Next

Page 453
________________ परिशिष्ट ... 395 सूत्र - जो अल्प अक्षरों में निबद्ध हो, महान् अर्थ का सूचक हो, बत्तीस दोषों से रहित तथा आठ गुणों से युक्त हो, वह सूत्र कहलाता है। 4 सामाचारी - गच्छ या समुदाय से प्रतिबद्ध सभी भिक्षुओं के लिए समान रूप से आचरणीय नियम सामाचारी कहलाती है। मूलाचार में सामाचारी के निम्न अर्थ बताये गये हैं 1. समता- सामाचार- राग-द्वेष का अभाव होना समता सामाचार है। 2. सम्यक आचार - मूलगुणों का निरतिचार पालन करने रूप सम्यक आचार सामाचार है। 3. सम आचारर - क्रोधादि कषायों से रहित होकर साध्वाचार का पालन करना अथवा क्षमादि धर्मों से युक्त होकर श्रमणाचार का पालन करना अथवा सहवर्ती साधुओं के साथ सामूहिक रूप से आहार ग्रहण, देववन्दन आदि क्रियाएँ करना सामाचार हैं। 4. समान आचार - सभी के लिए समान रूप से इष्टाचार सामाचार है | 5 संक्षेपतः आंचार और सामाचार में अविनाभावी सम्बन्ध है। दूसरे सभी मुनियों के लिए समान रूप से पालनीय होने के कारण आचार सामाचारी रूप कहलाते हैं। कालिक - उत्कालिक सूत्र - जिन सूत्रों के योग (अध्ययन) में कालग्रहण आवश्यक होता है अथवा जो आगम सूत्र काल विशेष में पढ़े जाते हैं अथवा जिन सूत्रों को पढ़ने के लिए शुद्ध काल की जरूरत रहती है, वे कालिक सूत्र कहलाते हैं। जिन सूत्रों के अध्ययन के लिए प्रथम एवं अंतिम प्रहर की मर्यादा नहीं होती है और कालग्रहण की अपेक्षा भी नहीं होती है, वे उत्कालिक सूत्र कहलाते हैं। काल प्रवेदन - प्राभातिक आदि चारों कालों में से किसी भी काल को शुद्ध रूप से ग्रहण करने पर 'यह काल शुद्ध है' ऐसा गुरु के समक्ष निवेदन करना काल प्रवेदन कहलाता है। प्रवेदन - प्र + सम्यक प्रकार से, वेदन- कहना अर्थात गुरु आदि के समक्ष कहने योग्य क्रिया विशेष को यथातथ्य रूप से बतलाना प्रवेदन है। सामान्यतः सुदृढ़ एवं अप्रमत्त मुनि ही प्रवेदन का कार्य करते हैं।

Loading...

Page Navigation
1 ... 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472