Book Title: Agam Adhyayan Ki Maulik Vidhi Ka Shastriya Vishleshan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith

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Page 444
________________ 386... आगम अध्ययन की मौलिक विधि का शास्त्रीय विश्लेषण परिवर्तन करना पड़े अथवा नगर से बाहर जाना पड़े तो उस समय पैरों में तलिए (जूते) धारण किए हुए हों तो पाँव अशुद्ध नहीं होते हैं अन्यथा अशुद्ध हो जाते हैं। दिन या रात्रि में अशुद्ध हाथ-पाँव आदि सुन्न हो जाएं तो कल्पत्रेप के द्वारा शुद्ध होते हैं। वस्त्र सम्बन्धी - यदि भोजन करते हुए धान्यादि कण अथवा दुग्धादि पीते हुए उसके छींटे चोलपट्ट या साड़े पर गिर जाए तो वह वस्त्र अशुद्ध हो जाता है, तब जल के द्वारा उसे शुद्ध करें। कल्पत्रेप हेतु उस दिन के जल का ही उपयोग करें, चूने युक्त बासी जल का उपयोग न करें। वसति सम्बन्धी - यदि नख और लोच के केशों को वसति के बाहर परिष्ठापित करना भूल जाएं तो तीसरे दिन सम्पूर्ण वसति अशुद्ध हो जाती है। बिल्ली - - कुत्ता या मनुष्य की विष्टा का स्पर्श होने पर शरीर या वसति अशुद्ध हो जाती है। तिरपनी आदि में रात भर रहा हुआ जल अशुद्ध हो जाता है, किन्तु कारण विशेष में रखने पर अशुद्ध नहीं होता है। इस प्रकार उपर्युक्त स्थितियों में कल्पत्रेप क्रिया करनी चाहिए। इसी के साथ वस्त्र, पात्र, वसति आदि कब - कैसे अशुद्ध होते हैं, इस बात का पूर्ण ध्यान रखना चाहिए। उपसंहार कल्पत्रेप जैन मुनियों की आवश्यक सामाचारी है। इस क्रिया के द्वारा वस्त्र, पात्र, शरीर, स्थान आदि की विधिपूर्वक शुद्धि की जाती है और यही द्रव्य कल्पत्रेप कहलाता है तथा द्रव्य कल्पपूर्वक आचार सम्बन्धी नियमों का निर्दोष परिपालन करना भाव कल्पत्रेप है। द्रव्य शुद्धि के आधार पर ही भाव शुद्धि अवलंबित है। आचार्य जिनप्रभसूरि ने कल्पत्रेप क्रिया के दो प्रकार निर्दिष्ट किए हैं 1. सामान्य और 2. विशेष। आहार भूमि, शरीर, मलोत्सर्ग आदि दैनिक कृत्य सम्बन्धी एवं वमन, रात्रि गमन, वसति, कंटक आदि अनियत कृत्य सम्बन्धी अशुद्धि दूर करना सामान्य कल्पत्रेप है और प्रत्येक छह माह के पश्चात पात्र आदि उपकरणों की विशिष्ट शुद्धि करना विशेष कल्पत्रेप है। जो साधु गच्छ, परम्परा या समुदाय विशेष से जुड़ा हुआ हो उसे दोनों प्रकार के कल्पत्रेप का पालन करना चाहिए। यदि इस अनुष्ठान के सम्बन्ध में कालक्रम की दृष्टि से विचार किया जाए तो आगम युग से लेकर विक्रम की ग्यारहवीं शती पर्यन्त के ग्रन्थों में लगभग

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