Book Title: Agam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra
Author(s): Darbarilal Nyayatirth
Publisher: Manikchand Digambar Jain Granthamala Samiti

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Page 713
________________ अथ दशवैकालिकसूत्रपाठः। JOS असणं पाणगं वा वि, खाइमं साइमं तहा ॥ जं जाणिक सुणिजा वा, वणिमत पगइमं ॥५१॥ तं नवे जत्तपाणं तु संजयाण अकप्पियं ॥ दितिरं पमिआश्के, न मे कप्पश् तारिसं ॥ ५॥ असणं पाणगं वा वि, खाश्मं सामं तहा ॥ जं जाणिक सुणिका वा, समणच पगडं श्मं ॥ ५३ ॥ तं नवे लत्तपाणं तु, संजयाण अकप्पियं ॥ दितिरं पमिश्राश्के, न मे कप्प३ तारिसं ॥ ॥ उद्देसिझं कीअगडं, पूश्कम्मं च आह; ॥ अनोअरपामिच्चं, मीसजायं विवाए ॥ ५५॥ जग्गमं से श्र पुलिजा, कस्सा पगडं करूं ॥ सुच्चा निस्संकि सुचं, पमिगाहिजा संजए ॥५६॥ असणं पाणगं वा वि. खाइमं सामं तहा ।। फुप्फेस हऊ उम्मीसं, बीएस हरिएसु वा ॥२७॥ तं नवे नत्तपाणं तु संजयाण अकप्पियं ॥ दितिर्थ पमित्राश्के, न मे कप्प३ तारिसं ॥ ५० ॥ असणं पाणगं वा वि, खाइमं साश्मं तहा ॥ उदगंमि हुआ निरिकत्तं, उत्तिंगपणगे सु वा ॥ एए॥ तं नवे जत्तपाणं तु, संजयाण अकप्पियं ॥ दितिरं पमियारेक, न मे कप्प३ तारिसं ॥ ६॥ असणं पाणगं वा वि, खाश्मं सामं तहा ॥ तेजम्मि हुङ निरिकत्तं, तं च संघट्टिया दए ॥ ६१॥ तं नवे नत्तपाणं तु, संजयाण अकप्पिरं ॥ दितिरं पडिआइके, न मे कप्प३ तारिसं ॥ ६ ॥ एवं उस्सिकि, उस किया, उजालिया, पजालिया, निवावि, ॥ नस्सिंचिआ, निस्सिचित्रा, वित्तिा यारिया दए ॥ ६३ ॥ तं नवे जत्तपाणं तु, संजयाण अकप्पियं ॥ दिति पडियाश्के, न मे कप्प३ तारिसं ॥ ६ ॥ हुङ कई सिलं वा वि, इट्टालं वा वि एकया ॥ उवि संकमाए, तं च होऊ चलाचलं ॥६५॥ ण तेण निरकु गलिजा, दिछ तब असंजमो ॥ गंजीरं कुसिर चेव, सबिंदिअसमाहिए ॥६६॥ निस्सेणि फलगं पीढं, उस्स वित्ता मारुहे ॥ मंचं कीलं च पासायं, समण एव दावए ॥ ६७ ॥ पुरूहमाणी पडिवजा, हवं पायं व लूसए ॥ पुढविजीवे वि हिंसिजा, जे अतन्निस्सिा जगे ॥ ६ ॥ ए आरिसे महादोसे. जाणिक महेसिपो॥ तह्मा मालोहडं निरकं. न पमिगिएहति संजया ॥६॥ कंदं मूलं पलंबं वा, श्राम बिन्नं च सन्निरं ॥ तुंबागं सिंगबेरं च, श्रामगं परिवजए॥ ७० ॥ तहेव सत्तुचुन्नाइ कोलचुन्नाइ श्रावणे ॥ सकुलिं फाणि पूध, अन्नं वा वितहाविहं ॥१॥ विक्कायमाणं पसदं, रएणं परिफासिकं ॥ दितिरं पडिआइके, न मे कप्प३ तारिसं ॥ १२ ॥ बहुअघ्रिं पुग्गलं, अणिमिसं वा बहुकंटयं ॥ अविशं तिंचं बिलं, नबुखंडं, व सिंबलिं ॥ ७३ ॥ अप्पो सिया लोणजाए, बहु उज्जय धम्मिए ॥ दंतिथं पडियाख्खे, न मे कप्पर तारिसं ॥ ४ ॥ तहे वुच्चावयं पाणं, अज्वावारधोअणं ॥ संसेश्मं चाउलोदगं, अहुणाधो विवजाए ॥ ७५॥ जं जाणेज चिरा धोयं, मईए दंसणेण वा ॥ पडिपुचिजण सुच्चा वा, जं च निस्संकि नवे ॥६॥ अजीवं परिणयं नच्चा, पमिगाहिक संजए ॥ अह संकियं नविजा, आसाश्त्ता ण रोअए ॥ ७ ॥ श्रोवमासायणकाए, हत्थगंमि दलाहि मे ॥ मामे अचंबिलं पूरं, नालं तिन्हें विणित्तए ॥ ७ ॥ तं च अच्चं बिलं पूर्य, नालं तिन्हं विणित्तए ॥ दितिरं पमिआख्खे, न मे कप्प३ तारिसं ॥ ए॥ तं च होऊ कामेणं, विमणेण पडिचिरं ॥ तं अप्पणा न पिबे, नो वि अन्नस्स दावए ॥ ७०.॥ एगंतमवक्कमित्ता, अचित्तं पडिलेहि ॥ जयं परिवविजा, परिठप्प पडिक्कमे ॥१॥ सिधा च गोयरग्गगठ, इबिजा परिजुत्तुकं ॥ कुगं नित्तिमूलं वा, पमिलेहित्ता ण फासुझं ॥ ॥ अणुन्नवित्तु मेहावी, पडिन्छन्नंमि संवुडं , हत्थगं संपमजित्ता, तत्थ लुजिक संजए ॥ ३ ॥ तत्थ से मुंजमाणस्स, अधेि कंट सिया ॥ तणकसक्करं वा वि, अन्नं वा वि तहाविहं ॥४॥ तं उरिकवित्तु न निरिकवे, आसएण न उड्डए ॥ हत्येण तं गहेऊण, एगंतमवक्कमे ॥५॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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