Book Title: Agam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra
Author(s): Darbarilal Nyayatirth
Publisher: Manikchand Digambar Jain Granthamala Samiti

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Page 723
________________ १७ अथ दशवैकालिकसूत्रपाठः । तहेव अविणीअप्पा, देवा जरका अ गुनगा ॥ दीसंति सुहमेहता, आनिगमुवआि ॥ १० ॥ तहेव सुविणीअप्पा, देवा जरका था गुनगा ॥ दीसंति सुहमेहंता, इढिं पत्ता महायसा ॥ ११॥ जे आयरिश्रजवप्नायाणं, सुस्सूसावयणंकरे ॥ तेसिं सिरका पवढंति, जलसित्ता इव पायवा ॥ १२॥ अप्पणछा परचा वा, सिप्पा ऐडणिआणि अ॥ गिहिणो जवनोगा, इहलोगस्स कारणा ॥ १३ ॥ जेण बंधं वदं घोरं, परिआवं च दारुणं ॥ सिरकमाणा निमंति, जुत्ता ते ललिइंदिया ॥१५॥ ते वि तं गुरु पूअंति, तस्स सिप्पस्स कारणा ॥ सकारंति नसंति, तुज निद्देसवत्तिणो ॥ १५॥ किं पुणं जे सुअग्गाही, अणंतहिकामए ॥ आयरिश्रा जं वए निरकू, तम्हा तं नाश्वत्तए ॥ १६॥ नीअं सिर्फ गइंगणं, नीअं च आसणाणि अ॥ नीअं च पाए वंदिजा, नीअं कुजा अ अंजलिं॥१७॥ संघदृश्त्ता काएणं, तहा नवहिणामवि ॥ खमेह अवराहं मे, वश्ज न पुणुत्ति अ॥ १७ ॥ मुग्गउँ वा पठएणं, चोळ वहई रहं ॥ एवं बुद्धि किच्चाणं, वुत्तो वुत्तो पकुबई ॥ १५ ॥ "पालवंते लवंते वा, न निसिङ पमिस्सुणे ॥ मुत्तूण आसणं धीरो, सुस्सूसाए पडिस्सुणो" ॥ कालं बंदोवयारं च, पडिले हित्ता ण हेजहिं ॥ तेण तेण उवाएणं, तं तं संपमिवायए ॥ २० ॥ विवत्ती अविणीअस्स, संपत्ती विणिअस्स य ॥ जस्सेह उह नायं, सिरकं से अन्निगल ॥२१॥ जे श्रावि चंडे मडिगारवे, पिसुणे नरे साहसहीणपेसणे ॥ अदिधम्मे विणए अकोविए, असंवित्नागी न हु तस्स मुरको ॥ २२॥ निदेस वित्ती पुण जे गुरूणं, सुअत्यधम्मा विणयंमि कोविया ॥ तरित्तु ते उघमिणं कुरुत्तरं, खवित्तु कम्मं गश्मुत्तमं गय ॥ त्तिबेमि ॥ २३ ॥ ॥ इति विणयसमाहिअनयणे बी उद्देसो सम्मत्तो ॥२॥ ॥ अथ विणयसाहिअष्भयणे तृतीय उद्देशः प्रारभ्यते ॥ आयरिश अग्निमिवादिअग्गी, सुस्सूसमाणो पमिजागरिजा ॥ आलोश्वं इंगिअमेव नच्चा, जो बंदमाराहई स पुजो ॥१॥ आयारमा विणयं पठंजे, सुस्सूसमाणो परिगिन वक्कं ॥ जहोवश्वं अलिकंखमाणो, गुरुं च नासायई स पुजो ॥२॥ रायणिएसु विणयं पठंजे, डहरा वि अ सुअ परिआय जिज ॥ नीचत्तणे वट्टर सच्चवाई, उवायणं वक्ककरे स पुजो ॥३॥ अनायउंबं चरई विसुद्धं, जवणच्या सुआणं च निच्चं ॥ अलाअं नो परिदेवश्जा, लहुं न विकलई स पुजो ॥४॥ संथारसिङ्गासणलत्तपाणे, अप्पिन्चया अश्वाने वि संते ॥ जो एवमप्पाणजितोसजा, संतोसपाहन्नरए स पुजो ॥ ५ ॥ सक्का सहेजं आसाश् कंटया, अमया उन्हया नरेणं ॥ अणासए जो उ सहिऊ कंटए, वईमए कन्नसरे स पुजो ॥६॥ मुहुत्तपुरका ज हवंति कंटया, अमया ते वि त सुनचरा ॥ वायाऽरुत्ताणि पुरुघराणि, वेराणुबंधीणि महप्नयाणि ॥ ७ ॥ समावयंता वयणानिघाया, कन्नंगया सुम्मणिशं जणंति ॥ धम्मुत्ति किच्चा परमग्गसूरे, जिदिए जो सहइ स पुजो ॥७॥ अवन्नवायं च परम्मुहस्स, पच्चरकर्ड पक्षिणीअं च जासं ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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