Book Title: Agam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra
Author(s): Darbarilal Nyayatirth
Publisher: Manikchand Digambar Jain Granthamala Samiti

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Page 727
________________ अथ दशवैकालिकसूत्रपाठः । मरोव जाणि सुरकमुत्तमं ॥ रयाण परिश्रा तहारयाणं ॥ निरर्जवमं जााि रकमुत्तमं रमित तम्हा परिचाइ पंडिए ॥ ११ ॥ धम्मान न सिरिd ववेयं, जन्नग्गि विनामिवप्पते ॥ संत हि कुसीला, दादुढिचं घोरविसं व नागं ॥ १२ ॥ धम्मो सो कित्ती, पुन्नामधिकं च पिदुम ॥ चुस्स धम्मान अहम्मसेविणो, संजिन्नचित्तस्स य हिउँ गइ ॥ १३ ॥ जितु जोगाई पसलसा, तहाविहं कट्टु संजमं बहुं ॥ हिां हं, बोही ा से नो सुलहा पुणे पुणो ॥ १४ ॥ इस्सता रस्स जंतुणो, होवणीस्स किलेसवत्तिणो ॥ पलिवमं जिन सागरोवमं, किमंग पुए मन इमं मणोऽहं ॥ १५ ॥ न मे चिरं रकम नविस्सर, असासया जोगपिवास जंतुणो ॥ न चे सरीरे इमे विस्सर, विस्सर जीविकावे मे ॥ १६ ॥ जस्सेवमप्पा उ हवि निचि, चइऊ देहं न दु धम्मसासणं ॥ तं तारिस नो पति इंदिया, उविंति वाया व सुदंसणं गिरिं ॥ १७ ॥ इव संपस्सि बुद्धिमं नरो, श्रयं उवायं विविहं विप्राणिया | कारण वाया 5 माणसेणं, तिगुत्ति गुत्तो जिवयण महिनिकासि ॥ त्तिबेमि ॥ १७ ॥ ॥ इति श्वक्का पढमा चूला सम्मत्ता ॥ ९१ ॥ अथ द्वितीया चूलिका ॥ चूलि तु पवरकामि, सुखं केवलिनासि ॥ जं सुणिन्तु सुपुष्षाएं, धम्मे उप्पए मई ॥ १ ॥ सोपबहुजणं मि, पडिसोलचल रकेणं ॥ परिसोत्रमेव अप्पा, दायचो होउकामेणं ॥ २॥ सो हो लोर्ड, परिसोर्ट सवो सुविहित्राणं ॥ ऋणुसो संसारोर्ट पडिसा तस्स उत्तारो ॥३॥ तम्हा श्रायारपरक्कमेणं, संवरसमा हिबहुलेणं ॥ चरिया गुणा का नियमा, अति साहू दहबा ॥ ४ ॥ निवास समुप्राणचरित्रा, अन्नायजंनं पय रिक्कया का || अप्पोवही कलहविवजणा, विहारचरित्रा इसि पसत्था ॥ ५ ॥ इन्न माविवऊणा, उसन्नदिवाहनत्तपाणे ॥ संस कप्पेण चरि निस्कू, तकायसंसह जई जड़ा ॥ ६ ॥ श्रम मंसासि श्रमरी, जिरकणं निबिग गया ॥ जिरकणं काज सग्गकारी, सनायजोगे पयर्ज हविका ॥ ७ ॥ पन्निविकासयासाई, सिद्धं निसिक तह जत्तपाणं ॥ गामे कुले वा नगरे व देसे, ममत्तज्ञावं न कहिं पि कुका ॥ ८ ॥ गिहिणो वेावां न कुजा, अनिवाय एवंदपूर्ण वा ॥ संकि लिहिं समं सविता, मुणी चरित्तस्स जर्ज न हाणी ॥ ए ॥ या लनेका निजणं सहायं, गुणाहिचं वा गुण समं वा ॥ कवि पावा विवायंतो, विहरित कामेसु समाणो ॥ १० ॥ तँ22 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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