Book Title: Agam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra
Author(s): Darbarilal Nyayatirth
Publisher: Manikchand Digambar Jain Granthamala Samiti

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Page 726
________________ २० राय धनपतसिंघ बदाउरका जैनागमसंग्रह भाग तेतालीस-(४३)-मा. उवहिंमि अमुचिए अगिधे, अन्नायचं पुल निप्पुलाए ॥ कयविक्कयसंनिहि विरए, सबसंगावगए थ जे स निरकू ॥ १६॥ अलोलनिरकू न रसेसु गिले, उंचं अरे जीविअनानिकंखी ॥ इढि च सक्कारणपूअणं च, चए रिअप्पा अणिहे जे स निरकू ॥ १७ ॥ न परं वश्कासि अयं कुसीले, जेणं च कुप्पिऊ न तं वजा ॥ जाणित्र पत्तेअं पुन्नपावं, अत्ताणं न समुक्कसे जे स निरकू ॥ १७ ॥ न जाश्मत्ते न य रूवमत्ते, न लालमत्ते न सुएण मत्ते ॥ जयाणि सबाणि विवजाश्त्ता, धम्मनाणरए जे स निरकू ॥ १५ ॥ पवेअए अऊपयं महामुणी, धम्मे हिट गवयश् परं पि॥ निरकम्म वजिक कुसीललिंगं, न आवि हासंकुहए जे स निरकू ॥ २० ॥ तं देहवासं असुई असासयं, सया चए निच्चहियष्अिप्पा ॥ बिंदित्तु जाश्मरणस्स बंधणं, उवेइ निरकू अपुणागमं गई॥त्तिबेमि ॥२१॥ ॥ इति सजिरकअनयणं दसमं संमत्तं ॥१०॥ ॥ अथ श्री दशवैकालिके प्रथमा चूलिका॥ इह खलु नो पवश्एणं उप्पन्नपुरकेणं संजमे रश्समावन्नचित्तेणं उहाणुप्पेहिणा अणोहाइएणं एव हयरस्सिगयंकुसपोयपमागानूआई इमाई अचारस गणाई सम्मंसपमिलेहिशवाइंनवंति। तं जहा हं नो ऽस्सलाई उप्पजीवी ॥ १ ॥ लहुसगा इत्तरिया गिहीणं कामनोगा ॥२॥ नुको अ सायबहुला मणुस्सा ॥ ३ ॥ इमे अ मे उरके न चिरकालोवजाइ नविस्सइ ॥४॥ उमजणपुरकारे ॥५॥ वंतस्स य पडियायणं॥६॥ अहरगश्वासो-वसंपया॥७॥ मुलहे खलु नो गिहीणं धम्मे गिहिवासमख्ने वसंताणं ॥॥आयके से वहाय हो ॥ए। संकप्पे से वहाय हो ॥१०॥ सोवक्केसे गिहवासे, निरुवक्केसे परिआए ॥११॥ बंधे गिहवासे, मुरके परिआए ॥१२॥ सावले गिहवासे, अणवो परिआए ॥१३॥ बहुसाहारणा गिहीणं कामनोगा ॥१३॥ पत्तेचं पुन्नपावं ॥१५॥ अणिच्चे खलु नो मणुरकाण जीविए कुसग्गजलबिंडुचंचले ॥१६॥ बहुं च खलु नो पावं कम्मं पगलं ॥ १७ ॥ पावाणं च खलु नो कमाणं कम्माणं कविं उच्चिन्नाणं उप्पमिकंताणं वेश्त्ता मुरको नत्थि अवश्त्ता तवसा वा कोसश्त्ता ॥ १७ ॥ अचरसमं पयं नवश्॥ नवश् अ इत्थ सिलोगो. ॥ जया य चयर धम्मं, अणजो जोगकारण ॥ से तत्थ मुनिए बाले, आयइं न वबुन ॥१॥ जया उहावि होश, इंदो वा पनि उमं ॥ सबधम्मपरिनो, स पन्ना परितप्पश्॥२॥ जया अ वंदिमो हो, पञ्चा होइ अवंदिमो ॥ देवया व चुा गणा, स पन्चा परितप्प३ ॥३॥ जया अपमो होड, पन्ना हो अपमो ॥ राया व रजापनको, स पञ्चा परितप्पा ॥४॥ जया अ माणिमो होइ, पन्छा होइ अमाणिमो ॥ सिकिब कब्बमे बूढो, स पन्चा परितप्पश् ॥ ५॥ जया श्र और होश, समश्कंतजुवणो ॥ मह व गलिं गलित्ता, स पञ्चा परितप्पश् ॥ ६॥ जया अ कुकुठंबस्स, कुतत्तीहिं विहम्मश् ॥ हत्थी व बंधणे बरो, स पञ्चा परितप्पश्॥७॥ पुत्तदारपरीकिन्नो, मोहसं ताणसंत ॥ पंकोसन्नो जहा नागो, स पन्चा परितप्पश् ॥ ७ ॥ अज आहं गणी हुँतो, नाविअप्पा बहुस्सु ॥ जय हं रमंतो परिआए, सामन्ने जिणदेसिए ॥ ए॥ देवलोगसमाणो अ, परिआ महेसिंणं ॥ रयाणं अरयाणं च, महानरयसारिसो॥ १० ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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