Book Title: Agam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra
Author(s): Darbarilal Nyayatirth
Publisher: Manikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
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११० राय धनपतसिंघ बहारका जैनागमसंग्रह नाग तेतालीस (४३) - मा.
हंदि धम्मत्थकामाण, निग्गंथाएं सुह मे आयारगोरं भीमं सयलं रहिहि ॥ ४ ॥ नन्नत्य एरिसं वृत्तं, जं लोए परमदुच्चरं ॥ विजलाणनाइस्स, न मूत्रं न जविस्स ॥ ५ ॥
खुड्डुगवित्ता, वाहियाणं च जे गुणा || खंडफुडिया कायबा, तं सुणेह जहा तहा ॥ ६॥ दस य गणाई, जाई बालो वरन ॥ तत्थ अन्नयरे ठाणे, निग्गंथत्तान जस्सइ ॥ ७ ॥ वयबक्कं कायक्कं, अकप्पो गिरिजायां ॥ पलियंकनिसका य, सवाणं सोहवणं ॥ ८ ॥ तत्थिमं पढमं ठाणं, महावीरेण देसि ॥ हिंसा निउणा दिवा, सबनूएस संजमो ॥ ए ॥ जावंति लोए पाणा, तसा डुव थावरा ॥ ते जाणमजाणं वा न हो यो विधाय ॥ १० ॥
जीवा विवंति जीवितं न मरिटिं ॥ तम्हा पाणिवहं घोरं, निग्गंथा वर्जयंति एं ॥ ११ ॥ ans परा वा, कोहा वा जइ वा जया || हिंसगं न मुसं वृचा, नो विन्नं वयावर ॥ १२ ॥ मुसावा उ लोगम्मि, सबसाहूहिं गरिहि ॥ विस्तासो आएं, तम्हा मोसं विवकए ॥ १३ ॥ चित्तमंतम चित्तं वा, पं वा जइ वा बहुं ॥ दंतसोहणमित्तं वि, उग्गहंसि जाया ॥ १४ ॥ तं पण न गिरहंति, नो वि गिरहावए परं ॥ अन्नं वा गिरहमाणं वि, नाणुजाणंति संजया ॥ १५ ॥ बंजचरित्र्यं घोरं, पमायं पुरहिािं || नायरंति मुणीलोए, नेश्राययावणिो ॥ १६ ॥ मूलमेयमहम्मस्स, महादोससमुस्सयं ॥ तम्हा मेहुणसंसग्गं, निग्गंथा वजयंति ॥ १७ ॥ बिडमुनेश्मं लोणं, तिलं सप्पिं च फाणि ॥ न ते संनिहिमिति, नायपुत्तवर्जरया ॥ १८ ॥ लोहस्सेसणुफासे, मन्ने अन्नयरामवि ॥ जे सिया सन्निहिं कामे, गिही पइए न से ॥ १९ ॥ जं पिवत्थं व पायं वा, कंबलं पायपुंणं ॥ तं पि संजमला, धारंति परिहरंति का ॥ २० ॥ न सो परिग्गहो वृत्तो, नायपुत्ते ताइणा ॥ मुत्था परिग्गहो वृत्तो, इ वृत्तं महे सिणा ॥ २१ ॥ सत्व हा बुद्धा, संररकण परिग्गहे ॥ वि अप्पणो वि देहंमि, नायरंति ममाश्यं ॥ २२ ॥
हो नि तवो कम्मं, सबबुद्धेहिं वन्नित्र्ां ॥ जा य लासमा वित्ती, एगजत्तं च जोखणं ॥ २३ ॥ संति मे सुदुमा पाणा, तसा व थावरा ॥ जाई रार्ज पासंतो, कहमेस पित्र्यं चरे ॥ २४ ॥ उदउब्वं बीअसंसत्तं, पाणा निवमिया महिं | दिया ताइं विवजिका, राजे तत्थ कहं चरे ॥ २५ ॥ एयं च दोसं द ुणं, नायपुत्ते जासि ॥ सवाहारं न मुंजंति, निग्गंथा राइनो ॥ २६ ॥ पुढविकार्य न हिंसंति, मासा वयसा कायसा || तिविदेणं करणजोएणं, संजया सुसमाहिया ॥ २७ ॥ ढविकायं विहिंसंतो, हिंसइ उ तयस्सिए ॥ तसे ा विविहे पाणे, चरकुसे चरकुसे || २८ ॥ तम्हा एवं विश्राशित्ता, दोसं दुग्गश्वढणं | पुढविकायसमारंजं, जावजी वाई वऊए ॥ २५ ॥
कार्यं न हिंसंति, मासा वयसा कायसा ॥ तिविहेण करणजोएण, संजया सुसमाहिया ॥ ३० ॥ कायं विहिंसंतो, हिंसइ उ तयस्सिए | तसे का विविहे पाणे, चरकुसे चरकुसे ॥ ३१ ॥ तम्मा एक विश्रापित्ता, दोसं दुग्गड़ वढ्ढणं ॥ श्राकायसमारंनं, जावजीवाई वऊए ॥ ३२ ॥ जायते न वंति, पावगं जलिश्त्तए || तिरकमन्नयरं सत्थं, सङ्घर्ज वि रासयं ॥ ३३ ॥ पाइं पडि वा वि, उ दिसामवि ॥ हे दाहिए वा वि, दहे उत्तर वि ॥ ३४ ॥ नूचाणमेसमाघार्ज, हववाहो न संसर्ज ॥ तं पविपयावा, संजया किंचि नारजे ॥ ३५ ॥ तम्हा विचाणित्ता, दोसं दुग्गवदृइां ॥ तेजकायसमारंजं, जीवजीवाई वऊए ॥ ३६ ॥
लिस्स समारंजं, बुद्धा मन्नंति तारिसं ॥ सावबहुलं चेयं, नेत्रां ताइहिं सेविकां ॥ ३७ ॥ तालिन पत्ते, साहाविदुणेण वा ॥ न ते वी इमिति, वेश्रावेण वा परं ॥ ३८ ॥ जं पिवत्थं व पायं वा, कंबलं पायपुंवणं ॥ न ते वायमुईरंति, जयं परिहरति ॥ ३५ ॥
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