Book Title: Agam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Part 04
Author(s): Bhadrabahuswami, Chaturvijay, Punyavijay
Publisher: Atmanand Jain Sabha
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१२
पासंगिक निदेदन । जादृशं पुस्तके दृष्ट, तादृशं लिखितं मया ।
यदि शुद्धमशुद्धं वा, मम दोषो न दीयते ॥ १ ॥ प्रन्थानम् सहश्र ४२६०० ॥ ॥ श्री ॥ छ ॥ ॥ श्री॥ ॥ श्रीरस्तु नो गुरोः ॥ छ ॥ श्री ॥ ॥श्री ॥ छ। ..............
आ पुष्पिकामां ज्यां टपकां मूकवामां आव्यां छे ते अक्षरोने आ प्रतिना कोई उठाउगीरे भूसी नाख्या छे । प्रतिनी स्थिति साधारण छे । प्रति भाभाना पाडाना ज्ञानसंग्रहमांनी होवाथी एनी अमे भा० संज्ञा राखी छे । आ प्रति अमे ज्ञानभंडारना वहीवटदार शेट उत्तमचंद नागरदास द्वारा मेळवी छे ।
४ मो० प्रति—आ प्रति पाटण-सागरगच्छना उपाश्रयमां मूकेला शेठ मोका मोदीना भंडारनी छे । एनां पानां १५१ छे। दरेक पानानी पूठीदीठ सत्तर सत्तर लीटीओ छे अने ए दरेक लीटीमां ६६ थी ७० अक्षरो छ । प्रतिनी लंबाई १३।। इंचनी अने पहोलाई ५। इंचनी छ । प्रतिना अंतमा लेखकनी पुष्पिका आदिनो उल्लेख नथी, ते छतां आ प्रति एक ज लेखकना हाथे लखायेली होई तेना पहेला वीजा खंडो अनुक्रमे संवत् १५७३-७४ मां लखायेला होवार्थी आ त्रीजो खंड ए पछीना वर्षमा लखायेलो छे एमां लेश पण शंकाने स्थान नथी । प्रतिनी स्थिति जीर्ण जेवी छ । प्रति मोदीना भंडारनी होई तेनी अमे मो० संज्ञा राखी छे ।
५ ले० प्रति-आ प्रति पाटण-सागरगच्छना उपाश्रयमा रहेला लेहेरु वकीलना ज्ञानभंडारनी छे । आ प्रति अपूर्ण होई तेनां पानां मात्र ४१ रह्यां छे अने वीजां गूम थयां छे । दरेक पानानी पूठीदीठ सत्तर सत्तर लीटीओ छे अने दरेक लीटीमां ६९ थी ७४ अक्षरो छ । प्रतिनी लंबाई १३।। इंचनी अने पहोळाई ५ इंचनी छ । प्रतिनी स्थिति जीर्ण जेवी छ । प्रति लेहेरु वकीलना भंडारनी होवाथी एनी अमे ले० संज्ञा राखी छे ।
उपरोक्त बन्नेय प्रतिओ अमे भंडारनी संरक्षक हेमचन्द्रसभा द्वारा मेलवी छ ।
६ ताटी० प्रति-आ प्रति पाटण-बखतजीनी सेरीमा रहेला संघना ज्ञानभंडारनी छे । एनां पानां ३३५ छ । दरेक पानानी पूठीदीठ ४ थी ६ लीटीओ लखायेली छे अने दरेक लीटीमा ५३० थी १४४ अक्षरो छ । प्रतिनी लंबाई ३४। इंचनी अने पहोळाई २। इंचनी छ । प्रति लांबी होई एने त्रण विभागमां लखवामां आवी छे अने तेने बांधवामाटे त्रण विभागना वे अंतरोमां वचमां काणां पाडेलां छ । प्रतिना अंतमां नीचे प्रमाणेनी पुष्पिका छे___ ग्रं० ९५५१ ॥ साहु० आसधरसुत साधु० श्रीरतनसीहसुत तेजपालश्रेयोऽर्थ अयं कल्पवृत्तिपुस्तकं तृतीयपंडं करापितं लिषापितं च ॥ सुभं भवत् ॥
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