Book Title: Agam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Part 04
Author(s): Bhadrabahuswami, Chaturvijay, Punyavijay
Publisher: Atmanand Jain Sabha
View full book text ________________
१८
गाथा
९४९
९४९
९४९-५१ ९५१-५५
९५१-५२
९५२
९५२
बृहत्कल्पसूत्र चतुर्थ विभागनो विषयानुक्रम ।
विषय
त्रीजा उपाश्रयसूत्रनी व्याख्या ३३९३-९५ त्रीजा उपाश्रयसूत्रमा आवतां पल्यागुप्त, मञ्चागुप्त,
मालागुप्त, अवलिप्त, लिप्त, पिहित, लाञ्छित अने
मुद्रित पदोनी व्याख्या ३३९६-३४०१ पल्यागुप्त आदि उपाश्रयमां वसवाथी अगीतार्थने
आश्री प्रायश्चित्त अने अयतनानुं स्वरूप ३४०२-१८ ४ चोथु उपाश्रयसूत्र
सुराविकटकुंभ, सौवीरविकटकुंभ वगेरे मूकेला होय
तेवा उपाश्रयमा निम्रन्थ-निम्रन्थीओने रहेवू न कल्पे ३४०२-३ चोथा उपाश्रयसूत्रनो पूर्वसूत्र साथे सम्बन्ध
___ चोथा उपाश्रयसूत्रनी व्याख्या ३४०४-५ 'हुरत्था' शब्दनो अर्थ अने 'परिहार'पदने 'छेद'
पद पछी राखवानुं कारण ३४०६ सुरा अने सौवीरक पदनी व्याख्या ३४०७-१२ सुराविकटकुंभादियुक्त उपाश्रयमां वसवाथी अगीता
र्थने आश्री अयतनानुं स्वरूप ३४१३-१८ सुराविकटकुंभादियुक्त उपाश्रयमां वसता गीतार्थने
आश्री स्वपक्ष-परपक्षविषयक यतनानुं स्वरूप ३४१९-२९ ५ पांचमुं उपाश्रयसूत्र
शीतोदकविकटकुंभादियुक्त उपाश्रयमा निर्ग्रन्थ
निम्रन्थीओने रहेQ कल्पे नहि. ३४१९ पांचमा उपाश्रयसूत्रनो पूर्वसूत्र साथे संबंध
पांचमा उपाश्रयसूत्रनी व्याख्या ३४२० शीतोदक-उष्णोदकविषयक चतुभंगी अने तयुक्त
उपाश्रयमां वसवाथी प्रायश्चित्त ३४२१-२९ शीतोदकविकटकुंभादियुक्त उपाश्रयमां वसता
अगीतार्थविषयक अयतनानुं वर्णन ३४३०-५८ ६ छटुं उपाश्रयसूत्र
ज्योतियुक्त उपाश्रयमां निर्ग्रन्थ-निर्ग्रन्थीओए न रहे, ३४३० छहा उपाश्रयसूत्रनो पूर्वसूत्र साथे सम्बन्ध
९५३-५४
९५४-५५ ९५६-५८
९५६
९५६
९५६
९५७-५८ ९५९-६६
९५९
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Loading... Page Navigation 1 ... 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 ... 444