Book Title: Agam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Part 04
Author(s): Bhadrabahuswami, Chaturvijay, Punyavijay
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 22
________________ १९ गाथा पत्र ९५९ ९५९-६० ३४३१-३२ ३४३३-५८ ३४५९-७३ ९६०-६६ ९६६-६८ ३४५९-६० ३४६१-७३ बृहत्कल्पसूत्र चतुर्थ विभागनो विषयानुक्रम । विषय छट्ठा उपाश्रयसूत्रनी व्याख्या 'हुरत्था' शब्दनो अर्थ आदि ज्योतिनुं स्वरूप अने तयुक्त उपाश्रयमां वसवाथी लागता दोषोनुं १ प्रतिलेखना २ प्रमार्जना ३ आवश्यक ४ पौरुषी ५ मनः ६ निष्क्रमण ७ प्रवेश ८ आपतन ९ पतन पदो द्वारा निरूपण, तद्विषयक प्रायश्चित्तो अने तेने लगती यतनाओ ७ सातमुं उपाश्रयसूत्र दीपकयुक्त उपाश्रयमा निर्ग्रन्थ-निर्ग्रन्थीओए न रहेवू 'हुरच्छा' शब्दनो अर्थ आदि दीपकना प्रकार अने तयुक्त उपाश्रयमा रहेवाथी लागता दोषोनुं प्रतिलेखना, प्रमार्जना आदि पदो द्वारा निरूपण, तद्विषयक प्रायश्चित्तो अने यतनाओ ८ आठमुं उपाश्रयसूत्र जे उपाश्रयमां पिंड, लोचक, दूध, दही, नवनीत आदि पदार्थो वेराएल होय त्यां निम्रन्थ-निर्ग्रन्थी. ओने रहेQ कल्पे नहि आठमा उपाश्रयसूत्रनो पूर्वसूत्र साथे संबंध आठमा उपाश्रयसूत्रमा आवतां पिण्ड, लोचक, फाणित, शष्कुली, शिखरिणी आदि पदोनी व्याख्या जे उपाश्रयमां पिंड, लोचक, फाणित आदि वेराएल होय त्यां वसवाने लगतां प्रायश्चित्तो ९ नवमुं उपाश्रयसूत्र जे उपाश्रयमां पिंड, लोचक, नवनीत आदि एक बाजु राखेल होय त्यां निम्रन्थ-निर्ग्रन्थीओने हेमंतप्रीष्म ऋतुमा रहेQ कल्पे १० दशमुं उपाश्रयसूत्र जे उपाश्रयमां पिंड, लोचक, नवनीत, फाणितादि बराबर मुद्रित करीने राखेल होय त्यां निम्रन्थनिर्ग्रन्थीओने चोमासामा रहेQ कल्पे ९६६-६८ ९६९-७० ३४७४-७९ ३४७४ ३४७५-७७ ९६९ ९६९-७० ३४७८-७९ ३४८०-८१ ९७०-७१ ३४८२-८३ ९७१-७२ Jain Education International. For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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