Book Title: Agam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Part 04
Author(s): Bhadrabahuswami, Chaturvijay, Punyavijay
Publisher: Atmanand Jain Sabha

View full book text
Previous | Next

Page 18
________________ ॥ अहम् ॥ द्वितीयोद्देशकप्रकृतानामनुक्रमः। पत्रम् सूत्रम् प्रकृतम् १-१२ उपाश्रयप्रकृतम् १३-१६ सागारिकपारिहारिक प्रकृतम् १७-१८ आहृतिकानिहतिका प्रकृतम् पत्रम् सूत्रम् प्रकृतम् ९२३ १९ अंशिकाप्रकृतम् १०१२ २०-२३ पूज्यभक्तोपकरणप्रकृतम् १०१४ २४ उपधिप्रकृतम् १०१७ १००४ २५ रजोहरणप्रकृतम् १०२१ ९८० तृतीयोद्देशकप्रकृतानामनुक्रमः । सूत्रम् प्रकृतम् पत्रम् । सूत्रम् प्रकृतम् पत्रम् १-२ निर्गन्ध्युपाश्रयप्रवेश- १७ शैय्यासंस्तारकपरिप्रकृतम् १०२३ भाजनप्रकृतम् ११८१ ३-६ चर्मप्रकृतम् १०५० १८ कृतिकर्मप्रकृतम् ११९२ कृत्स्नाकृत्स्नवस्त्रप्रकृतम् १०६७ अन्तरगृहस्थानादि. ८-९ भिन्नाभिन्नवस्त्रप्रकृतम् १०७५ प्रकृतम् १२३० १०-११ अवग्रहानन्तकावग्रह- | २०-२१ अन्तरगृहाख्यानादिपट्टकप्रकृतम् १११८ प्रकृतम् १२३३ १२ निश्राप्रकृतम् ११२८ २२-२४ शय्यासंस्तारकप्रकृतम् १२४२ १३-१४ त्रिकृत्स्नप्रकृतम् ११३७, २५-२९ अवग्रहप्रकृतम् १२५४ १५ समवसरणप्रकृतम् ११४९ ३० रोधेकप्रकृतम् १२८७ १६ वस्त्रपरिभाजनप्रकृतम् ११६७ ३१ अवग्रहप्रमाणप्रकृतम् १२९८ १ यद्यप्यत्र कृत्स्नाकृत्स्नप्रकृतम् इति मुद्रितं - १ अत्र यथारत्नाधिकशय्यासंस्तारग्रहण. वर्तते तथाप्यत्र कृत्स्नाकृत्तवस्त्रप्रकृतम् इति । प्रकृतम् इति मुद्रितं तत्स्थाने शय्यासंस्तारकबोद्धव्यम् ॥ परिभाजनप्रकृतम् इति ज्ञेयम् ।। २१०७५ पृष्ठशिरोदेशे सूत्रम् इत्यस्योपरिष्टात् ____ २ अत्र सेनाप्रकृतम् इति मुद्रितं तत्स्थाने भिन्नाभिन्नवस्त्रप्रकृतम् इति ज्ञातव्यम् ॥ रोधकप्रकृतम् इति विज्ञेयम् ॥ ३ अत्र यथारत्नाधिकवस्त्रग्रहणप्रकृतम् ३ अत्र अवग्रहक्षेत्रप्रमाणप्रकृतम् इति इति मुद्रितं विद्यते तत्स्थाने वस्त्रपरिभाजन- मुद्रितं वर्तते तत्स्थाने अवग्रहप्रमाणप्रकृतम् इति प्रकृतम् इति ज्ञेयम् ॥ ! बोदव्यम् ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 ... 444