Book Title: Agam 34 Nisiham Padhamam Cheyasuttam Mulam PDF File Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar Publisher: Deepratnasagar View full book textPage 5
________________ उद्देसो-१ गारत्थिएण वा परिघट्टावेति वा [संठवेति वा जमावेति वा अलमप्पणो करणयाए सुहममवि नो कप्पड़ जाणमाणे सरमाणे अन्नमन्नस्स वियरति वियरंतं वा। सातिज्जति । [४१] जे भिक्खू पायस्स एकं तुडियं तड्डेति तड्डे सातिज्जति | [४२] जे भिक्खू पायस्स परं तिण्हं तुडियाणं तड्डेति तड्डेंतं वा सातिज्जति । [४३] जे भिक्खू पायं अविहीए बंधति बंधतं वा सातिज्जति । [४४] जे भिक्खू पायं एगेण बंधेण बंधंति बंधतं वा सातिज्जति । [४५] जे भिक्खू पायं परं तिण्हं बंधाणं बंधति बंधतं वा सातिज्जति | [४६] जे भिक्खू अतिरेगबंधणं पायं दिवड्ढाओ मासाओ परं धरेति धरेतं वा सातिज्जति । [४७] जे भिक्खू वत्थस्स एगं पडियाणियं देति देंतं वा सातिज्जति | [४८] जे भिक्ख वत्थस्स परं तिण्हं पडियाणियाणं देति देंतं वा सातिज्जति । [४९] जे भिक्ख अविहीए वत्थं सिव्वति सिव्वंतं वा सातिज्जति | [५०] जे भिक्खू वत्थस्स एगं फालिय-गंठियं करेति करेंतं वा सातिज्जति । [५१] जे भिक्खू वत्थस्स तिण्हं फालिय-गंठियाणं करेति करेंतं वा सातिज्जति । [५२] जे भिक्खू वत्थस्स एग फालियं गंठेति गंठंतं वा सातिज्जति । [५३] जे भिक्खू वत्थस्स परं तिण्हं फालियाणं गंठेति गंठेतं वा सातिज्जति । [१४] जे भिक्खू वत्थं अविहीए गंठेति गंठेतं वा सातिज्जति । [५५] जे भिक्खू अतज्जाएणं गाहेति गाहेंतं वा सातिज्जति । [१६] जे भिक्खू अइरेगगहियं वत्थं परं दिवड्ढाओ मासाओ धरेति धरेतं वा सातिज्जति । [१७] जे भिक्खू गिहधूमं अन्नउत्थिएण वा गारत्थिएण वा परिसाडावेति परिसाडावेंतं वा सातिज्जति । [५८] जे भिक्खू पूतिकम्मं भुंजति भुजंतं वा सातिज्जति । ___- तं सेवमाणे आवज्जइ मासियं परिहारहाणं अनुग्घातियं । • पढमो उद्देसो समत्तो . • बिइओ-उद्देसो ० [५९] जे भिक्खू दारुदंडयं पायपुंछणं करेति करेंतं वा सातिज्जति | [६०] जे भिक्खू दारुदंडयं पायपुंछणं गेण्हति गेहंतं वा सातिज्जति | [६१] जे भिक्खू दारुदंडयं पायपुंछणं धरेति धरेतं वा सातिज्जति । [६२] जे भिक्खू दारुदंडयं पायपुंछणं वितरति वितरेंतं वा सातिज्जति । [६३] जे भिक्खू दारुदंडयं पायपुंछणं परिभाएति परिभाएंतं वा सातिज्जति | [६४] जे भिक्खू दारुदंडयं पायपुंछणं परि जति परिभुजंतं वा सातिज्जति | [६५] जे भिक्खू दारुदंडयं पायपंछणं परं दिवड्ढाओ मासाओ धरेति धरेंतं वा सातिज्जति | [६६] जे भिक्खू दारुदंडयं पायपुंछणं विसुयावेति विसुयावेतं वा सातिज्जति | [६७] जे भिक्खू अचित्तपतिट्ठियं गंधं जिंघति जिंघतं वा सातिज्जति । [दीपरत्नसागर संशोधितः] [4] [३४-निसीह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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