Book Title: Agam 34 Nisiham Padhamam Cheyasuttam Mulam PDF File
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 19
________________ [३०२] जे भिक्खू गामाणुगामं दूइज्जमाणे अन्नमन्नस्स सीसवारियं करेति करेंतं वा सातिज्जति । [३०३] जे भिक्खू साणुप्पए उच्चार-पासवणभूमि न पडिलेहेति न पडेलेहेंतं वा सातिज्जति । उद्देसो-४ [३०४] जे भिक्खू तओ उच्चार-पासवणभूमीओ न पडिलेहेति न पडेलेहेंतं वा सातिज्जति । [३०५] जे भिक्खू खुड्डागंसि थंडिलंसि उच्चार-पासवणं परिहवेति परिहवेंतं वा सा० | [३०६] जे भिक्खू उच्चार-पासवण अविहीए परिहवेति परिहवेंतं वा सातिज्जति । [३०७] जे भिक्खू उच्चार-पासवणं परिद्ववेत्ता न पुंछति न पुंछतं वा सातिज्जति | [३०८] जे भिक्खू उच्चार-पासवणं परिद्ववेत्ता कट्टेण वा कलिंचेण वा अंगुलियाए वा सलागाए वा पंछति पंछंतं वा सातिज्जति । [३०९] जे भिक्खू उच्चार-पासवणं परिद्ववेत्ता नायमति नायमंतं वा सातिज्जति । [३१०] जे भिक्खू उच्चार-पासवणं परिद्ववेत्ता तत्थेव आयमति आयमंतं वा सातिज्जति । [३११] जे भिक्खू उच्चार-पासवणं परिद्ववेत्ता अतिदूरे आयमति आयमंतं वा सातिज्जति । [३१२] जे भिक्खू उच्चार-पासवणं परिद्ववेत्ता परं तिण्हं नावापूराणं आयमति आयमंतं वा सातिज्जति । [३१३] जे भिक्खू अपरिहारिए णं परिहारियं बूया एहि अज्जो ! तुमं च अहं च एगओ असनं वा पानं खाइमं वा साइमं वा पडिग्गाहेत्ता तओ पच्छा पत्तेयं-पत्तेयं भोक्खामो वा पाहामो वा जे तं एवं वदति वदंतं वा सातिज्जति-तं सेवमाणे आवज्जइ मासियं परिहारहाणं उग्घातियं । • चउत्थो उद्देसो समत्तो .. • पंचमो-उद्देसो ० [३१४] जे भिक्खू सचित्तरुक्खमूलंसि ठिच्चा आलोएज्ज वा पलोएज्ज वा आलोएतं वा पलोएंतं वा सातिज्जति । [३१५] जे भिक्खू सचित्तरुक्खमूलंसि ठाणं वा सेज्जं वा निसीहियं वा चेएति चेएंतं वा सातिज्जति । [३१६] जे भिक्खू सचित्तरुक्खमूलंसि ठिच्चा असनं वा पानं वा खाइमं वा साइमं वा आहारेति आहारेंतं वा सातिज्जति । ___ [३१७] जे भिक्खू सचित्तरुक्खमूलंसि ठिच्चा उच्चारं वा पासवणं वा परिहवेति परिवेंतं वा सातिज्जति । [३१८] जे भिक्खू सचित्तरुक्खमूलंसि ठिच्चा सज्झायं करेति करेंतं वा सातिज्जति | [३१९] जे भिक्खू सचित्तरुक्खमूलंसि ठिच्चा सज्झायं उद्दिसति उद्दिसंतं वा सातिज्जति | [३२०] जे भिक्खू सचित्तरुक्खमूलंसि ठिच्चा सज्झायं समुद्दिसति समुद्दिसंतं वा सातिज्जति । [३२१] जे भिक्खू सचित्तरुक्खमूलंसि ठिच्चा सज्झायं अनुजाणति अनुजाणंतं वा साति० | [३२२] जे भिक्खू सचित्तरुक्खमूलंसि ठिच्चा सज्झायं वाएति वाएंतं वा सातिज्जति । दीपरत्नसागर संशोधितः] [18] [३४-निसीह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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