Book Title: Agam 34 Nisiham Padhamam Cheyasuttam Mulam PDF File Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar Publisher: Deepratnasagar View full book textPage 4
________________ उद्देसो-१ [१८] जे भिक्खू कण्णसोहणगस्स उत्तरकरणं अन्नउत्थिएण वा गारत्थिएण वा कारेति कारेंतं वा सातिज्जति । [१९] जे भिक्खू अणद्वाएं सूई जायति जायंतं वा सातिज्जति । [२०] जे भिक्खू अणट्ठाए पिप्पलगं जायति जायंतं वा सातिज्जति । [२१] जे भिक्खू अणट्ठाए नखच्छेयणगं जायति जायंतं वा सातिज्जति | [२२] जे भिक्खू अणट्ठाए कण्णसोहणगं जायति जायंतं वा सातिज्जति | [२३] जे भिक्खू अविहीए सूई जायति जायंतं वा सातिज्जति । [२४] जे भिव अविहीए पिप्पलगं जायति जायंतं वा सातिज्जति । [२५] जे भि भविहीए नहच्छेयणगं जायति जायंतं वा सातिज्जति । [२६] जे भिक्ख अविहीए कण्णसोहणगं जायति जायंतं वा सातिज्जति । [२७] जे भिक्खू अप्पणो एक्कस्स अट्ठाए सूइं जाइत्ता अन्नमन्नस्स अनुप्पदेति अनुप्पदेंतं वा सातिज्जति । [२८] जे भिक्खू अप्पणो एक्कस्स अट्ठाए पिप्पलगं जाइत्ता अन्नमन्नस्स अनुप्पदेति अनुप्प-तं वा सातिज्जति । ___[२९] जे भिक्खू अप्पणो एक्कस्स अट्ठाए नहच्छेयणगं जाइत्ता अन्नमन्नस्स अनुप्पदेति अनुप्पदेंतं वा सातिज्जति । [३०] जे भिक्खू अप्पणो एक्कस्स अट्ठाए कण्णसोहणगं जाइत्ता अन्नमन्न अनुप्पदेंतं वा सातिज्जति । [३१] जे भिक्खू पाडिहारियं सूई जाइत्ता वत्थं सिव्विस्सामि त्ति पायं सिव्वति सिव्वंतं वा सातिज्जति | __ [३२] जे भिक्खू पाडिहारियं पिप्पलगं जाइत्ता वत्थं छिंदिस्सामि त्ति पायं छिंदति छिंदंतं वा सातिज्जति । [३३] जे भिक्खू पाडिहारियं नहच्छेयणगं जाइत्ता नहं छिंदिस्सामि त्ति सल्लुद्धरणं करेति करेंतं वा सातिज्जति | [३४] जे भिक्खू पाडिहारियं कण्णसोहणगं जाइत्ता कण्णमलं नीहरिस्सामि त्ति दंतमलं वा नखमलं वा नीहरेति नीहरेंतं वा सातिज्जति । [३५] जे भिक्खू अविहीए सूई पच्चप्पिणति पच्चप्पिणतं वा सातिज्जति । [३६] जे भिक्ख अविहीए पिप्पलगं पच्चप्पिणति पच्चप्पिणंतं वा सातिज्जति । [३७] जे भिक्खू अविहीए नहच्छेयणगं पच्चप्पिणति पच्चप्पिणतं वा सातिज्जति । [३८] जे भिक्खू अविहीए कण्णसोहणगं पच्चप्पिणति पच्चप्पिणतं वा सातिज्जति | [३९] जे भिक्खू लाउपायं वा दारुपायं वा मट्टियापायं वा अन्नउत्थिएण वा गारत्थिएण वा परिघट्टावेति वा संठवेति वा जमावेति वा अलमप्पणो करणयाए सहममवि नो कप्पड़ जाणमा अन्नमन्नस्स वियरति वियरंतं वा सातिज्जति । [४०] जे भिक्खू दंडयं वा लट्ठियं वा अवलेहणियं वा वेणुसूइयं वा अन्नउत्थिएण वा दीपरत्नसागर संशोधितः] [3] [३४-निसीह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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