Book Title: Agam 25 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Kappo Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 10
________________ ५६८ कप्पो संखर्डि' वा संखडिपडियाए एत्तए । एगागिगमण-पदं ४५. नो कप्पइ निग्गंथस्स एगाणियस्स राओ वा वियाले वा बहिया वियारभूमि वा विहारभूमि वा निक्खमित्तए वा पविसित्तए वा। कप्पइ से अप्पबिइयस्स वा अप्पतइयस्स वा राओ वा वियाले वा बहिया वियारभूमि वा विहारभूमि वा निक्खमित्तए वा पविसित्तए वा ।। ४६. नो कप्पइ निग्गंथीए एगाणियाए राओ वा वियाले वा बहिया वियारभूमि वा विहारभूमि वा निक्ख मित्तए वा पविसित्तए वा । कप्पइ से अप्पबिइयाए वा अप्पतइयाए वा अप्पचउत्थीए वा राओ वा क्यिाले वा बहिया वियारभूमि वा विहार भूमि वा निक्खमित्तए वा पविसित्तए वा ॥ आरियखेत्त-पदं ४७. कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथोण वा पुरत्थिमेणं जाव अंग-मगहाओ एत्तए, दक्खि णणं जाव कोसंबीओ एतए, पच्चत्थिमेणं जाव थूणाविसयाओ एत्तए, उत्तरेणं जाव कुणालाविसयाओ एत्तए । एतावताव कप्पइ, एतावताव आरिए खेत्ते । नो से कप्पइ एत्तो बाहिं । तेण परं जत्थ नाणदंसणचरित्ताई उस्मप्पंति । -त्ति बेमि॥ १. वृत्तिकृता एतत् पृथक्सूत्रत्वेन व्याख्यातम् ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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