Book Title: Agam 25 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Kappo Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 23
________________ चउत्थो उद्देसो ५८१ अणुवट्ठावियए, तं नो अप्पणा भुंजेज्जा तो अण्णेसि दावए' एगंते बहुफासुए थंडिले' पडिलेहित्ता पमज्जित्ता परिवेयव्वे सिया ॥ कपट्ठिय-अकपट्ठिय-पदं १५. जे' कडे कपट्टियाणं कप्पइ से अकप्पट्ठियाणं, नो से कप्पइ कप्पट्ठियाणं । जे अकपट्ठियाणं नो से कम्पइ कप्पट्ठियाणं कप्पइ से अकम्पट्ठियाणं । कप्पे ठिया कपट्टिया, अकप्पे ठिया अकल्पट्ठिया ॥ अण्णगण - उयसंपदा-पदं १६. भिक्खू य गणाओ अवक्कम्म इच्छेज्जा अष्णं गणं उवसंगज्जित्ताणं विहरित्तए, नो से कप्पइ अापुच्छित्ता' आयरियं वा उवज्झायं वा पवत्ति वा थेरं वा गणि वा गणहरं वा गणावच्छेइयं वा अण्णं गणं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए कप्पइ से आपुच्छित्ता आयरियं वा जाव गणावच्छेइयं वा अण्णं गणं उवसंज्जित्ताणं विहरित्तए । ते य से वियरेज्जा", एवं से कप्पइ अण्णं गणं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए; तेय से नो वियरेज्जा, एवं से नो कप्पइ अण्णं गणं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए । १७. गणावच्छेइए य गणाओ अवक्कम्म इच्छेज्जा अण्णं गणं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए, 'नो कप्पइ गणावच्छेइयस्स गणावच्छेइयत्त अनिक्खिवित्ता अण्णं गणं उवसंपज्जित्ताणं विहरितए; " कपइ गणावच्छेइयस्स गणावच्छेइयत्तं निक्खिवित्ता अण्णं गणं उवसंपज्जित्ताणं विहरितम् । नो से कप्पइ अणापुच्छित्ता आयरियं वा जाव गणावच्छेइयं वा अण्णं गणं उवसं" ज्जित्ताणं विरित्तए, कप्पड़ से आपुच्छित्ता आयरियं वा जाव गणावच्छेइयं वा अण्णं गणं उवसंपज्जित्ताणं विहरितए । ते य से वियरेज्जा, एवं से कप्पइ अण्णं गणं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए; ते य से नो वियरेज्जा, एवं से नो कप्पइ अण्णं गणं उवसंपज्जित्ताणं विहरितम् ॥ १८. आयरिय उवज्झाए य गणाओ अवक्कम्म इच्छेज्जा अण्णं गणं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए, 'नो कप्पइ आयरिय-उवज्झायस्स आयरिय उवज्झायत्तं अनिक्खि १. अणुप्पदेज्जा ( क, ख, ग, जी, शु) 1 २. पसे (पु, मवृ ) | ३. अस्य सूत्रस्य स्थाने प्रयुक्तादर्शेषु विभिन्नाः पाठा लभ्यन्ते, यथा— जे कडे कप्पट्टियाणं नो से कप्पइ कम्पट्ठियाणं, कप्पइ से अकप्पट्ठियाणं । जे कडे अकपट्ठियाणं नो से कप्पर कप्पट्ठियाणं कप्प से अकपट्ठियाणं, कप्पे दिया कप्पट्ठिया अकप्पे दिया अकपट्टिया ( क ग ) जे कडे कपट्टिया नो से कप्पइ कप्पट्ठियाणं, कप्पड़ से अकप्पट्ठियाणं । जे कडे अकष्पट्ठियाणं नो से कप्पइ कप्पट्ठियाणं । जे कडे अकष्पट्ठियाणं Jain Education International पति से अपट्टियाणं कपट्टिया वि कप्पे दिया कप्पट्टिया अकप्पे दिया विकप्पे द्विया ( ख ) ; जे कडे कप्पट्टियाणं नो से कप्पइ कम्पनियाणं, जे कडे कम्पद्वियाणं कप्पइ से अकपट्टिट्ठयाणं, जे कड़े अकपट्टियाणं नो से sure कम्पट्ठियाणं, जे कडे अकम्पट्ठियाणं कप्पइ से अकपट्ठियाणं कम्पट्टिया वि कप्पे ठिया पदिया, अपेठिया अकष्पट्टिया (जी, शु) 1 ४. अणापुच्छित्ताणं ( क, ख ) । ५. विपति (क, ख, जी, शु) सर्वत्रापि । ६. × (पु) । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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