Book Title: Agam 10 Prashnavyakaran Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 18
________________ आगम सूत्र १०, अंगसूत्र-१०, 'प्रश्नव्याकरण' द्वार/अध्ययन/ सूत्रांक साक्षात श्मशान समान, अतीव रौद्र होने के कारण भयानक और जिसमें प्रवेश करना अत्यन्त कठिन है, ऐसे संग्राम रूप संकट में चल कर प्रवेश करते हैं। इनके अतिरिक्त पैदल चोरों के समूह होते हैं । कईं ऐसे सेनापति भी होते हैं जो चोरों को प्रोत्साहित करते हैं । चोरों के यह समूह दुर्गम अटवी-प्रदेश में रहते हैं । उनके काले, हरे, लाल, पीले और श्वेत रंग के सैकड़ों चिह्न होते हैं, जिन्हें वे अपने मस्तक पर लगाते हैं । पराये धन के लोभी वे चोर-समुदाय दूसरे प्रदेश में जाकर धन का अपहरण करते हैं और मनुष्यों का घात करते हैं । इन चोरों के सिवाय अन्य लूटेरे हैं जो समुद्र में लूटमार करते हैं । वे लूटेरे रत्नों के आकर में चढ़ाई करते हैं । वह समुद्र सहस्रों तरंग-मालाओं से व्याप्त होता है । पेय जल के अभाव में जहाज के कुल-व्याकुल मनुष्यों की कल-कल ध्वनि से युक्त, सहस्रों पाताल-कलशों की वायु के क्षुब्ध होने से उछलते हुए जलकणों की रज से अन्धकारमय बना, निरन्तर प्रचुर मात्रा में उठने वाले श्वेतवर्ण के फेन, पवन के प्रबल थपेड़ों से क्षुब्ध जल, तीव्र वेग के साथ तरंगित, चारों ओर तूफानी हवाएं क्षोभित, जो तट के साथ टकराते हए जल-समूह से तथा मगर-मच्छ आदि जलीय जन्तुओं के कारण अत्यन्त चंचल हो रहा होता है। बीच-बीच में उभरे हुए पर्वतों के साथ टकराने वाले एक बहते हुए अथाह जल-समूह से युक्त है, गंगा आदि महानदियों के वेग से जो शीघ्र ही भर जाने वाला है, जिसके गंभीर एवं अथाह भंवरों में जलजन्तु चपलतापूर्वक भ्रमण करते, व्याकुल होते, ऊपर-नीचे उछलते हैं, जो वेगवान अत्यन्त प्रचण्ड, क्षुब्ध हुए जल में से उठने वाली लहरों से व्याप्त हैं, महाकाय मगर-मच्छों, कच्छपों, ओहम्, घडियालों, बड़ी मछलियों, सुंसुमारों एवं श्वापद नामक जलीय जीवों के परस्पर टकराने से तथा एक दूसरे को निगल जाने के लिए दौड़ने से वह समुद्र अत्यन्त घोर होता है, जिसे देखते ही कायरजनों का हृदय काँप उठता है, जो अतीव भयानक है, अतिशय उद्वेगजनक है, जिसका ओर-छोर दिखाई नहीं देता, जो आकाश से सदृश निरालम्बन है, उपपात से उत्पन्न होने वाले पवन से प्रेरित और ऊपराऊपरी इठलाती हुई लहरों के वेग से जो नेत्रपथ-को आच्छादित कर देता है। उस समुद्रों में कहीं-कहीं गंभीर मेघगर्जना के समान गूंजती हुई, व्यन्तर देवकृत घोर ध्वनि के सदृश तथा प्रतिध्वनि के समान गंभीर और धुक्-धुक् करती ध्वनि सुनाई पड़ती है । जो प्रत्येक राह में रुकावट डालने वाले यक्ष, राक्षस, कूष्माण्ड एवं पिशाच जाति के कुपित व्यन्तर देवों के द्वारा उत्पन्न किए जानेवाले हजारों उत्पातों से परिपूर्ण है जो बलि, होम और धूप देकर की जाने वाली देवता की पूजा और रुधिर देकर की जाने वाली अर्चन प्रयत्नशील एवं सामुद्रिक व्यापार में निरत नौका-वणिकों-जहाजी व्यापारियों द्वारा सेवित है, जो कलिकाल के अन्त समान है, जिसका पार पाना कठिन है, जो गंगा आदि महानदियों का अधिपति होने के कारण अत्यन्त भयानक है, जिसके सेवन में बहुत ही कठिनाईयाँ होती हैं, जिसे पार करना भी कठिन है, यहाँ तक कि जिसका आश्रय लेना भी दुःखमय है, और जो खारे पानी से परिपूर्ण होता है । ऐसे समुद्र में परकीय द्रव्य के अपहारक ऊंचे किए हुए काले और श्वेत झंडों वाले, अति-वेगपूर्वक चलने वाले, पतवारों से सज्जित जहाजों द्वारा आक्रमण करके समुद्र के मध्य में जाकर सामुद्रिक व्यापारियों के जहाजों को नष्ट कर देते हैं। जिनका हृदय अनुकम्पाशून्य है, जो परलोककी परवाह नहीं करते, ऐसे लोग धन से समृद्ध ग्रामों, आकरों, नगरों, खेटों, कर्बटों, मडम्बों, पत्तनों, द्रोणमुखों, आश्रमों, निगमों एवं देशों को नष्ट कर देते हैं। और वे कठोर हृदय या निहित स्वार्थवाले, निर्लज्ज लोग मानवों को बन्दी बनाकर गायों आदि को ग्रहण करके ले जाते हैं। दारुण मति वाले, कृपाहीन-अपने आत्मीय जनों का भी घात करते हैं । वे गृहों की सन्धि को छेदते हैं । जो परकीय द्रव्यों से विरत नहीं हैं ऐसे निर्दय बुद्धि वाले लोगों के घरों में रक्खे हुए धन, धान्य एवं अन्य प्रकार के समूहों को हर लेते हैं । इसी प्रकार कितने ही अदत्तादान की गवेषणा करते हुए काल और अकाल में इधर-उधर भटकते हुए ऐसे श्मशान में फिरते हैं वहाँ चिताओं में जलती हुई लाशें पड़ी हैं, रक्त से लथपथ मृत शरीरों को पूरा खा लेने और रुधिर पी लेने के पश्चात इधर-उधर फिरती हई डाकिनों के कारण जो अत्यन्त भयावह जान पड़ता है, जहाँ गीदड़ खीं-खीं ध्वनि कर रहे हैं. उल्लओं की डरावनी आवाज आ रही है, भयोत्पादक एवं विद्रूप पिशाचों द्वारा अट्टहास मुनि दीपरत्नसागर कृत् । (प्रश्नव्याकरण) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 18

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