Book Title: Agam 10 Prashnavyakaran Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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आगम सूत्र १०, अंगसूत्र-१०, 'प्रश्नव्याकरण'
द्वार/अध्ययन/ सूत्रांक गुड़, खाँड़, मिसरी, मधु, मद्य, माँस, खाद्यक और विगय से रहित आहार करे । वह दर्पकारक आहार न करे । दिन में बहुत बार न खाए और न प्रतिदिन लगातार खाए । न दाल और व्यंजन की अधिकता वाला और न प्रभूत भोजन करे । साधु उतना ही हित-मित आहार करे जितना उसकी संयम-यात्रा का निर्वाह करने के लिए आवश्यक हो, जिससे मन में विभ्रम उत्पन्न न हो और धर्म से च्युत न हो । इस प्रकार प्रणीत-आहार की विरति रूप समिति के योग से भावित अन्तःकरण वाला, ब्रह्मचर्य की आराधना में अनुरक्त चित्त वाला और मैथुन से विरत साधु जितेन्द्रिय और ब्रह्मचर्य से सुरक्षित होता है।
प्रकार ब्रह्मचर्य सम्यक प्रकार से संवत और सरक्षित होता है । मन, वचन, और काय, इन तीनों योगों से परिरक्षित इन पाँच भावनारूप कारणों से सदैव, आजीवन यह योग धैर्यवान् और मतिमान् मुनि को पालन करना चाहिए । यह संवरद्वार आस्रव से, मलीनता से, और भावछिद्रों से रहित है । इससे कर्मों का आस्रव नहीं होता । यह संक्लेश से रहित है, शुद्ध है और सभी तीर्थंकरों द्वारा अनुज्ञात है । इस प्रकार यह चौथा संवरद्वार स्पृष्ट, पालित, शोधित, पार, कीर्तित, आराधित और तीर्थंकर भगवान की आज्ञा के अनुसार अनुपालित होता है, ऐसा ज्ञातमुनि भगवान ने कहा है। यह प्रसिद्ध है, प्रमाणों से सिद्ध है। यह भवस्थित सिद्धों का शासन है। सुर, नर आदि की परिषद् में उपदिष्ट किया गया है, मंगलकारी है । जैसा मैंने भगवान से सूना, वैसा ही कहता हूँ।
अध्ययन-९-का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
मुनि दीपरत्नसागर कृत् । (प्रश्नव्याकरण) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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