________________ समर्पण जिनका हृदय अलौकिक माधुर्य से प्राप्लावित है, जिनकी वाणी में अद्भुत प्रोज है, जिनकी कर्तृत्व-क्षमता अनूठी है, उन्हीं श्री वर्द्धमान स्थानकवासी जैन श्रमणसंघ के आधारस्तम्भ श्रमणसूर्य कविवर्य महास्थविर मरुधरकेसरी प्रवर्तकवर्य मनि श्री मिश्रीमलजी महाराज के कर-कमलों में सादर, सविनय और सभक्ति / 0 मधुकर मुनि (प्रथम संस्करण से) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org