Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 17
________________ ज्ञाताधर्मकथाङ्गो कालेणं तेणं समएणं तेयलिपुरं नाम नगरं पमयवणे उजाणे कणगरहे राया । तस्स णं कणगरहस्स पउमावई देवी। तस्स णं कणगरहस्स तेयलिपुत्ते णामं अमच्चे सामदंडदक्खे। तत्थ णं तेयलिपुरे कलादे नामं मूसियारदारए होत्था अड्डे जाव अपरिभूए । तस्स णं भद्दा नामं भारिया। तस्स णं कलायस्म मूसियारदारयस्स धूया, भदाए अत्तया पोटिला नामं दारिया होत्था रूवेण य जोव्वणेण य लावपणेण य उकिट्रा उकिट्टसरीरा । तएणं पोटिला दारिया अन्नया कयाइ व्हाया सव्वालंकारविभूसिया चेडियाचकवालपरिवुडा उप्पि पासायवरगया आगाप्ततलगंसि कणगमएणं तिंदूसएणं कीलमाणीर विहरइ ॥ सू० १ ॥ टीका-जम्बूस्वामी पृच्छति-यदि खलु भदन्त ! श्रमणेन भगवता महावीरेण यावत्संप्राप्तेन त्रयोदशस्य ज्ञाताध्ययनस्य अयमर्थः प्रज्ञप्तः चतुर्दशस्य खलु भदन्त ! ज्ञाताध्ययनस्य श्रमणेन भगवता महावीरेण यावत्सम्पाप्तेन कोऽर्थः टीकार्थ-जंबू स्वामी पूछते हैं कि ( भंते-जइणं समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तणं) हे भदंत! यदि श्रमण भगवान महावीरने कि जिन्होंने सिद्धिगति नाम का स्थान प्राप्त कर लिया है (तेरसमस णायज्झयणस्स अयमढे पण्णत्ते चोदसमस्स णं भंते! णायज्झयणस्स समणेणं भगवया महावीरे णं जाव संपत्तेणं के अटे पण्णत्ते) तेरहवें ज्ञाताध्ययन का पूर्वोक्त रूप से अर्थ प्रज्ञप्स किया है-तो हे भदंत ! चौदहवें ज्ञाताध्ययन का उन्हीं श्रमण भगवान् महावीर ने क्या अर्थ निरूपित किया __ -स्वामी पूछे छे ? ( भंते ! जइणं समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं) ३ मत ! श्रम लगवान महावीरे-रे। सिद ગતિ સ્થાનને મેળવી ચૂક્યા છે. ( तेरसमस णायज्झयणस्स अयमढे पण्णत्ते, चोदसमस्स णं भंते ! णायज्झयणस्स समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं के अटे पण्णते) તેરમા જ્ઞાતાધ્યયનને પૂર્વોક્ત રૂપે અર્થ નિરૂપિત કર્યો છે તે હે ભદંત ! તે શ્રમણ ભગવાન મહાવીરે જ આ ચૌદમા જ્ઞાતાધ્યયનને શો અર્થ નિરૂપિત કર્યો છે? श्री शताधर्म थांग सूत्र :03

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