Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 03 Sthanakvasi Author(s): Ghasilal Maharaj Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar SamitiPage 16
________________ तामा ॥ श्रीवीतरागाय नमः ॥ श्रीजैनाचार्य जैनधर्मदिवाकर-पूज्यश्री-घासीलालप्रतिविरक्तिया अनगार धर्मामृतवर्षिण्याख्यया व्याख्यया समलकृतं श्री-ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्रम् तृतीयो भागः ___ अथ चतुर्दशाध्ययनं प्रारभ्यते अस्य व्यख्यायमानचतुर्दशाध्ययनस्य व्याख्यातेन त्रयोदशेनाध्ययनेन सहायमभिसम्बन्धः-पूर्वस्मिन् अध्ययने सतां गुणानां गुणाभिवर्द्धकसद्गुरूपदेशरूपसामय्यभावे हानिरुक्ता, इहतु-तथाविधसामग्रीसद्भावे गुणसंपदुपजायते, इत्यभिधीयते, इत्येवं पूर्वेण सहाभिसंबद्धस्यास्येदमादिसूत्रम्-'जइणं भंते 'इत्यादि । मूलम्-जइणं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं तेरसमस्त णायज्झयणस्स अयमद्वे पण्णत्ते, चोदसमस्स णं भंते ! णायज्झयणस्स समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं के अटे पण्णते? एवं खलु जंबू! तेणं चौदहवां अध्ययन प्रारंभःइस चौदहवें अध्ययन का तेरहवें अध्ययन के साथ इस प्रकार का संबन्ध है-तेरहवें अध्यन में जो यह बात कही गई है कि आत्मा में सम्यग्दर्शन आदि प्रकट भी हो गये, हों परन्तु यदि उन को बढाने वाली सद्गुरु आदि की उपदेश रूप सामग्री का अभाव रहे तो उन गुणों की हानि हो जाति है। इस अध्ययन में अब सूत्रकार यह स्पष्ट करेंगे कि यदि जीव को तथाविध सामग्री प्राप्त होती रहती है तो गुण संपत्ति भी बढती रहती है:-'जइणं भंते' इत्यादि । शीभु मध्ययन प्रारम-- ચૌદમા અધ્યયનનો તેરમા અધ્યયનની સાથે આ જાતને સંબંધ છે કે તેરમા અધ્યયનમાં જે આ વાતનું સ્પષ્ટીકરણ કરવામાં આવ્યું છે કે આત્મામાં સમ્યગ્દર્શન વગેરે પ્રગટ પણ થઈ ગયાં હોય છતાં જે સદ્દગુરૂ વગેરેની ઉપદેશ રૂપ તેમનું વર્ધન કરનાર સામગ્રી હાય નહિ તે તે ગુણની હાનિ થઈ જાય છે. આ અધ્યયનમાં સૂત્રકાર હવે એ જ વાત સ્પષ્ટ કરવા માગે છે કે જીવને જે તથાવિધ સામગ્રી મળતી રહે છે તે ગુણ સંપત્તિ પણ વધતી રહે છે. ' जइणं भंते ' इत्यादि-- શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાંગ સૂત્રઃ ૦૩Page Navigation
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