Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Suyagado Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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|छ । समवाउ चउत्थमंग संमत्तं ॥ छ ॥ ग्रंथाग्र १६६७ ||छ |
इस प्रति में पाठ बहुत संक्षिप्त है । अनेक स्थानों पर केवल प्रथम अक्षर ही लिखे गए हैं।
श्रीमदभयदेवसूरिवृत्ति: ( मुद्रित ) -
प्रकाशक -- श्रेष्ठी माणिकलाल चुन्नीलाल, कान्तिलाल, चुन्नीलाल- अहमदाबाद | संपादक -- मास्टर नगीनदास, नेमचन्द ।
सहयोगानुभूति -
जैन परम्परा में वाचना का इतिहास बहुत प्राचीन है । आज ये १५०० वर्ष पूर्व तक आगम की चार वाचनाएं हो चुकी हैं। देवद्धगणी के बाद कोई सुनियोजित आगम-वाचना नहीं हुई। उनके वाचना-काल में जो आगम लिखे गए थे, वे इस लम्बी अवधि में बहुत ही अव्यवस्थित हो गए हैं। उनकी पुनर्व्यवस्था के लिए आज फिर एक सुनियोजित वाचना की अपेक्षा थी । आचार्यश्री तुलसी ने सुनियोजित सामूहिक वाचना के लिए प्रयत्न भी किया था, परन्तु वह पूर्ण नहीं हो सका । अन्ततः हम इसी निष्कर्ष पर पहुंचे कि हमारी वाचना अनुसन्धानपूर्ण, गवेषणापूर्ण तटस्थदृष्टि समन्वित तथा सपरिश्रम होगी तो वह अपने आप - सामूहिक हो जाएगी। इसी निर्णय के आधार पर हमारा यह आगमवाचना का कार्य प्रारम्भ हुआ ।
हमारी इस वाचना के प्रमुख आचार्य श्री तुलसी हैं। वाचना का अर्थ अध्यापन है। हमारी इस प्रवृत्ति में अध्यापनकर्म के अनेक अंग हैं- पाठ का अनुसंधान, भाषान्तरण, समीक्षात्मक अध्ययन तुलनात्मक अध्ययन आदि-आदि। इन सभी प्रवृत्तियों में हमें आचार्यश्री का सक्रिय योग, मार्ग-दर्शन और प्रोत्साहन प्राप्त है । यही हमारा इस गुरुतर कार्य में प्रवृत्त होने का शक्ति-बीज है ।
मैं आचार्यश्री के प्रति कृतज्ञता ज्ञापन कर भार-मुक्त होऊं, उसकी अपेक्षा अच्छा है कि अग्रिम कार्य के लिए उनके आशीर्वाद का शक्ति-संबल पा और अधिक भारी बनूं
प्रस्तुत ग्रन्थ के पाठ संपादन में मुनि सुदर्शनजी, मुनि मधुकरजी और मुनि हीरालालजी का पर्याप्त योग रहा है। मुनि शुभकरणजी इस कार्य में क्वचित् संलग्न रहे हैं। प्रतिशोधन में मुनि दुलहराजजी का पूर्ण योग मिला है । इसका ग्रंथ परिमाण मुनि मोहनलाल जी (आमेट) ने तैयार किया है ।
कार्य निष्पत्ति में इनके योग का मूल्यांकन करते हुए मैं इन सबके प्रति आभार व्यक्त करता हूँ ।
आगमविद् और आगम-संपादन के कार्य में सहयोगी स्व० श्री मदनचन्दजी गोठी को इस अवसर पर विस्मृत नहीं किया जा सकता। यदि वे आज होते तो इस कार्य पर उन्हें परम हर्ष होता ।
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