Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Suyagado Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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प्रति परिचय (अ.) आचारांग (दानों श्रु तस्कंध) यह प्रति जैन-भवन, कलाकार स्ट्रीट, कलकत्ता-७ की श्री श्रीचन्द जी रामपुरिया द्वारा प्राप्त है। इसके पत्र १८५ हैं। प्रत्येक पत्र १०३ इंच लम्बा तथा ४३ इंच चौड़ा है। प्रत्येक पत्र में १-२७ तक पंकियां हैं। प्रत्येक पंक्ति में ४०-४५ तक अक्षर हैं। पत्र के चारों ओर वत्ति लिखी हुई है। प्रति सुन्दर व कलात्मक है। संवत् आदि नहीं है।
(क.) आचारांग मूलपाठ दोनों श्रु तस्कन्ध यह प्रति गधैया पुस्तकालय, सरदारशहर से श्री मदनचन्द जी गोठी द्वारा प्राप्त है। इसके पत्र ६७ हैं। प्रत्येक पत्र १० इंच लम्बा तथा ४ इंच चौड़ा है। पंक्तियां १३ हैं। प्रत्येक पंक्ति में ५०-५२ तक अक्षर हैं। प्रति के अंत में लिखा हैं----
संवत् १६७६ वर्षे आषाढ सुदि द्वितीय ४ भौम । श्री मालान्वये राक्याणगोत्रे सं० जटमल पुत्र सं० वेणीदास पुस्तक प्रदत्तं श्री मद्नागपुरीय तपागच्छ सं० श्रीमानकोतिसूरि शिष्य माधव ज्योतिविद् ।
अंत के अक्षर किसी अन्य व्यक्ति के मालूम होते हैं। प्रति के बीच में बावडी तथा तीन बड़े-बड़े लाल टीके हैं।
(ख.) आचारांग टब्बा (प्रथम श्रुतस्कन्ध) यह प्रात गधैया पुस्तकालय से गोठी जी द्वारा प्राप्त है। इसके ४६ पत्र हैं। पंक्तियां पाठ की ७ तथा टब्बे की १४ हैं। प्रत्येक पत्र १० इंच लम्बा तथा ४ इंच चौड़ा है। प्रत्येक पंक्ति में ४२ से ४५ तक पाठ के अक्षर हैं । अन्तिम प्रशस्ति निम्नोक्त है--
संवत् १७३२ वर्षे श्रावणमासे कृष्णपक्षे पंचमी तिथौ गुरु वासरे। लिखितं पूज्य ऋषिश्री ५ अमराजी तशिष्येण लिपिकृतं मुनिविकी आत्मार्थो शुभं भवतु कल्याणमस्तु । सेहुरीया ग्रामे संपूर्ण मस्ति ।। (ग.) आचारांग (प्रथमश्र तस्कन्ध) पंच पाठी (बालावबोध) यह प्रति गधया पुस्तकालय से श्री गोठी जी द्वारा प्राप्त है। इसके १० पत्र हैं। प्रथम ३ तथा छठा पत्र नहीं है। प्रत्येक पत्र १० इंच लम्बा तथा ४१ इंच चौड़ा है। मूलपाठ को पंक्तियां ५ से १० तक हैं। अक्षर ३० से ३३ तक हैं। अन्तिम प्रशस्ति नहीं है। (घ.) आचारांग दोनों श्रुतस्कन्ध (जीर्ण)
यह प्रति भारतीय संस्कृति विद्या-मन्दिर, अहमदाबाद से श्री गोठी जी द्वारा प्राप्त है।
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