Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Suyagado Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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एवं परिहिउं एवं अण्णत्थ एगेण पडिलेहगेण ।
अह पुण एवं जाणिज्जा-उपातिकते हेमंते गिम्हे सुपडिवणे से अथ पडिजुण्णमुवधि पदिट्ठावेज्ज।
--४।४२१ टीका, पत्र ६११
अह पुण एवं जाणेज्जा--उवाइक्कते खलु हेमंते, गिम्हे पडिवण्णे अहापरिजुन्नाइं वत्थाइ परिवेज्जा।
आयारो ६।५०, ६६, ७२ ।
पडिलेहर्ण, पादपंछणं, उग्गहें कडासणं अण्णदरं उधि पावेज्ज ।
-४।४२१ टीका, पत्र ६११
वत्थं पडिग्गहं कंबल, पायछणं उग्गहं च कडासणं एतेसु चेव जाणेज्जा ।
आयारो २।११२ ।
तथावत्थेसणाए-वृत्तं तत्थ एसे हिरिमणे सेगं वत्थं वा धारेज्ज पडिलेहणगं विदियं, तत्थ एसे जुग्गिदे देसे दुवे वत्थाणि धारिज्ज पडिलेहणगं तदियं तत्थ एसे परिसाइं अणधिहासस्स तओ वत्थाणि धारेज्ज पडिलेहणं चउत्थं ।
-.४१४२१ टीका, पत्र ६११
जे णिग्गंथे तरुणे जगवं बलवं अप्पायंके थिरसंघयणे से एगं वत्थं धारेज्जा णो बितियं 1
आयारचूला ५२।
से भिक्खू वा भिक्खूणी वा अभिकखेज्जा पायं एसित्तए।
तथा पाएसणाए कथितंहिरिमणे वा जुग्गिदे चाविअण्णगे वा तस्स ण कप्पदि वस्थादिकं पुनश्चोक्तं सत्रैव-पादचरित्तए। आलावु पत्तं वा दारुग पत्तं वा मट्रिगपत्तं वा, अप्पाणं अप्पबीजं अप्पसरिदं तथा अप्पकारं पत्तलाभे सति पडिग्गहिस्सामि ।
४।४२१ टीका, पत्र ६११
तं जहा–अलाउपायं वा दारुपायं वा, मट्टिया पायं वा तहप्पगार पायं ।--- (आयारचूला ६।१) फासुपं एसणिज्ज ति मण्णमाणे लाभे संते पडिगाहेज्जा।
आयारचूला ६.२२
भावनायां चोक्तं-- चरिमं चीवरधारी तेण परम चेलके
तु जिणे।
४।४२१ टीका, पत्र ६११
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