Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 6
________________ होवाथी वादशांगना बारमा दृष्टिवादमां तेनो समावेश थायजे. वर्तमान श्रीमहावी र परमेश्वरना शासनमा हाल प्रवर्तमान पीस्तालीश सूत्रो ले ते सर्व श्रुतझाननाज नेद जे एम जाणवू. बीजा पण अक्षर अनदादिक चौद थने पर्याय पर्यायसमासादिक वीश नेद पण . हाल पंचम कालमा मात्र श्रुत झानज प्रगट पणे वे अने मति झान तो श्रुतझान रूपज ; केमके श्रुत ज्ञान, समवायिकारण, मतिज्ञान के घने कार्यथी कारण निन्न नथी, किंतु ? अनिन्नज जे. बीजां अवधि, मनःपर्यव अने केव ल, ए त्रण शान था समयमा देत्र कालादिक नेदने लीधे था क्षेत्रमा श्रीवीर तीर्थकर ना शासनमा प्रवर्त्तमान नथी; मात्र मतिश्रुतरूप श्रुतझाननोज प्रसार रह्यो . ए श्रुत ज्ञानना उद्देश, समुद्देश, अनुज्ञा अने अनुयोग, ए चार प्रकार थाय दे. सामान्य कथन करवू, तेनुं नाम उद्देश; विशेषकथन करवू, ते समुद्देश : आज्ञा अ थवा अनुमोदन ते अनुज्ञा ; अने प्रश्न, टला, प्रार्थना प्रमुख कर तेने अनुयोग क हीयें. अटला कारण मार्ट व्याख्यान करवामां श्रत झानज नपयोगीले, पण बीजां झान नथी; माटे चालता समयमां श्रुतज्ञाननी वृद्धि तथा संरक्षण करवू, ते धर्मनी वृद्धि तथा संरक्षण कस्या प्रमाणे बे. या ठेकाणे ज्ञान कारण ले अने धर्म कार्य जे. हवे जेम राजा तथा प्रधान ए बेन प्रजानी वृद्धि तथा संरक्षणने माटें तत्पर होय , तेम बादशांगीरूप श्रुतझाननां मूलसूत्र, राजा समान वे थने तेना अर्थ रूप टीका, नाष्य, चूर्णी प्रमुख, प्रधान तुल्य बे. तेथी सूत्र अने टीका प्रमुख धर्मनी वृक्षित था संरक्षणने माटे ने अने ते श्रुतज्ञानरूप ले तेथी श्रुत ज्ञाननी वृक्षियने संरक्षण करवाना उपाय तथा तत्संबधी उद्योगमां यस्मन्मतविजयानिलाषी, सुझजनोयें ब परिकर थइ तन, मन बने धनवडे आग्रह राखीने आदरवा, एना जे बीजं को पण धर्मति करवानु अत्युत्तम साधन नथी. श्रुतझाननी सतत वृद्धि ने संरक्षण करवानुं साधन वर्तमान कालमा मुहायंत्र सर्वोत्तम . ते धाराएं ग्रंथो उपावीने तेना नंमारा कराववा, ए सर्वोत्तमोत्तम उपायले. तेउमा प्रथम श्रुतज्ञानना थाधारन त एवा जे पिस्तालिश आगम , तेने शुरू करी पावीने प्रसिभ करवा. एवा स र्वोत्कृष्ट नपायनो श्री मकशुदाबादेति नगर निवासी “ रायधनपतिसिंहजी प्रतापसिंह जी बहाउर" तेउएं पोतानां परलोक प्राप्त मातुश्री “ महताब बाई" तेमना निरंत र. नामस्मरण निमित्तें तथा पूर्ण पुण्योपार्जन निमित्तें तथा अस्मदीय दर्शनग त सुजन पुरुषोने श्रुतज्ञान वृद्धि थवाने निमित्ते, प्रारंन कस्यो ने. उपर कह्या जे पी स्तालीश बागम तेमांथी हाल था “श्री सूयगडांगसूत्र" बापवाने मने थाज्ञा कस्याथी; में यथामति शुरू करीने बाप्युंडे. या ग्रंथ, अत्युत्तम अने अभुत रचना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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