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त, मली त्रेवीश अध्ययनो बे. अने तेमां तेत्रीश उद्देशाने बे. एनी पद संख्या त्रीश हजारनी बे. मूल सूत्रनी श्लोक संख्या ( २१००) बे. एमां मुख्यत्वें इव्यानुयोग नी प्रधानता ने स्वमतानुसारी महान् साधु जनोने उदासीनरूप क्रिया प्रवृ त्ति याश्रयी उपदेश करतां थकां अन्य पाखंमी दर्शनीना मतोनुं खंमन यथायोग्य कीधुं बे. ए शीवाय बीजा पण जे जे विषयोबे ते सर्व अनुक्रमणिकामां सविस्तर दर्शा वेला बे, ते जोवाथी स्पष्ट समजाशे.
ए ग्रंथनी टीका करनार पंमितोमा श्रेष्ठ एवा श्री शीलंगाचार्य नामें पंमित हता, विक्रम संवत् बसोना सुमारमां थइ गया एवी दंतकथा बे. ए विषे कोई ग्रंथ साक्षी खापे एवं खाज सुधी महारा जाणवामां याव्यं नयी ए महान् टीकाकारनी जन्मनू मि वलनीपुर नगरी जे हाल वलानें नामें प्रख्यात बे त्यां दती, एवं मने सांन लवामां खाणुं बे. सांप्रत कालना पंमितो एमनी टीका वांचीने तेनी वाक्यरचना तथा उत्तम सरलता सायें गांनिर्घ्य अने शब्द चातुर्यथी मोह पामी स्तुति करवामां महोटो खानंद माने बे. ए टीकानी श्लोक संख्या बार हजार याक्शो ने पचाश बे. ए महा पंमितें अन्यसूत्रो याचारांगादि उपर पण टीका करेली बे. ए स्तुतिपात्र टीकाकारनी टीका करवानी शैली एवी सरल घने सुगम बे के ते वांचतां वांचतां पंमि तोने पदशः परमानंदप्राडुर्भाव थातो रहेज नहिं तथा एनी मनोहर रचना यने अर्थ चमत्कृतिनी एवी सुंदर बटाथी वांचनार ते वाणी रसनेज अनुनवे. सूक्ष्म विषयनुं वि वेचन एव लौकिक ढबथी करूं बे के वक्ता तेमज श्रोता उजयना मनने संपू
संतोष उपजे ने क्यारें पण संशयतो देश मात्र रहेज नहीं. प्रत्येक विषयनुं निरूपण साद्यंत नियम बंध कीधेनुं बे के जेथी खापोयाप तेनी सर्व मतलब ध्यान मां यावे; जेम एक वार लखेली वातनो संबंध बीजे ठेकाणे लगाडवो होय, तो त्यां पूर्ववत् ए संकेतथी वांचनारने तुरत घागली वातनुं ज्ञान थाय. वली या टीका वांच ar की जाये टीकाकारें ग्रंथकर्तानो सर्वहृत अभिप्राय सान्निध्यताथी निःशेष श्रवण को होय एम टीका वांचनारने उत्प्रेक्षा थाय बे. एम सूत्रनो अक्षरशः अर्थ न जाय एवी
तें निर्युक्तिक टीका करी बे एवा अनेक प्रकार जेणे करीने टीकानी श्रेष्टता घने स्तुति पंमितो करे, ते या महाविद्वान पंकितनी टीकामां नजरें खावे बे. टुंकामां एटलुं ज़ के बे के जेटजी खुबी ए टीकामां रही बे ते सर्व विस्तारनी बार बे. मात्र वां चवाथीज तेनो खानंद प्राप्त थाय एम बे.
एनी दीपिका श्री हेमविमलसूरिएं विक्रम संवत् १५०३ ना वर्षमां करेली . तेन श्लोक संख्या मूल सुधां सात हजार बे कारण के "सप्त सहस्त्राणि किंचिन्न्यूना
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