Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 10
________________ G ए उपर देवने विषे तृणादिक उत्पन्न करवा माटें असमर्थ बे ते बतां ते लोकने विषे निंदानें पात्र यतो नथी. तेमज जे पुरुषने ए वाणी गमती नथी ते तेनुं पोतानुंज दौर्भाग्य समजतुं माटें कुशल बुद्धिवाला सनोने या जिनवाणी रूप प्राधान्य ग्रंथ महोत्स्वरूप यानंद यापनारो था अने तेमना चित्त रूप सरोवरने विषे प्रेम रूप जल नराठे, तथा तेने योगें तेजने मोह रूप महा सुंदर कमलनी प्राप्ति या. घस्तु. शा० जी० मा० . विज्ञापना. परमेश्वरनी वाणी रूप अमृतरस जेमां रेलाइ रह्यो होय तेवा ग्रंथोने मुंड़ित क री प्रसिद्ध करवाए महा परमार्थ बे. एथी सुजनो खानंद पामेबे विवेकी जनो प तन पाठन करीने जिनधर्म जावमां दृढता वधारे बे, सामान्य जीवो व्याख्यानादिक श्र वण करीने धर्मलाजने पामे बे. सजन पुरुषो वांचीने पोताना चित्तनें निर्मल रा खी धर्मने विषे यादर करे. एवी उत्कृष्ट जिनवाणी जेमां मुख्य बे एवा श्रुतज्ञाननी वृद्धि, संरक्षण तथा विनय करवा जेवुं कोइ पण उग्र, पुण्यप्रकृति बांधनारुं बीजं शु न कर्म नथी. तेनुं साधन वर्तमान समयमा उपर कह्या प्रमाणे मुझयंत्र घणुं सुल न ने मनोहर बे. एनी सहायताथी सर्व सूत्रो तथा सर्व ग्रंथो बपावी प्रसिद्ध करवा, एश्रुतज्ञानी वृद्धि, संरक्षण तथा विनय, हाल सर्वोत्कृष्ट गणाय एम बे खरं प ए कार्य, इव्यवान् गृहस्थथी बनी शके. जेम इव्यवान् तेमज वली श्रीजिन धर्म प्रसार उपर प्रीतिमान् पण संपूर्ण होवो जोइयें, एवो असाधारण पुरुष चतुर्विध संघ मां को विरनोज मी खावे. जेम हाल बाबु साहेब "राय धनपतिसिंहजी प्रतापसिं हजी” बे. एवो श्रावक आधुनिक वर्तमान कालमा बीजो कोइ पण नथी. एमो उक्त रीतिप्रमाणे प्रीतिसहित सर्व यागमो उपावी प्रसिद्ध करवानो उद्योग चालु करचोळे. ए स्वधर्मायी बाबु साहेबें मने हाल श्री सूयगडांग सूत्र बापवानी खाज्ञा करी ते में यथा बुधयनुसार सुधारीने मूल सूत्र, दीपिका, टीका तथा बालावबोध सहित बाप्युं छे. एमां दृष्टिदोषथी वा बुद्धिदोषथी अज्ञानरूप अंधकारना पराधीन पणाथी कोई अपद, वा शब्दनी योजना थइ होय तो सजन पुरुषोएं तेने माटे मने कमा करवी. यद्यपि या मारो विवेक योग्य नथी केम के सतनोनो तो एवो स्वनावज होय बे के कोइ पण सत्कर्ममां दोष तेनी दृष्टिगोचर थतो नथी, ते बतां पूर्वे श्रेष्ठ ग्रंथकारोएं एवी Jain Education International For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org

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