Book Title: Adhyatmik Gyan Vikas Kosh Author(s): Rushabhratnavijay Publisher: Rushabhratnavijay View full book textPage 4
________________ 1. दान 2. शील धर्म दिया जाता है वह-दान दान अनेक प्रकार से शास्त्रों में दर्शाया है। मुख्य पाँच प्रकार से दान धर्म विभाजित किया गया है। जिन्समें - 1.अभयदान, 2. सुपात्रदान, 3.अनुकम्पादान, 4.उचितदान, 5. कीर्तिदान अनुकंपा सुपात्रदान कीर्तिदान उचितदान यश कीर्ति हेतु अवसर, प्रसंग उचित जो दिया जाता जो राजा महाराजाहै वह उचित दान । वस्तुपाल श्रेष्ठी आदि के द्वारा तेजपाल आदिने अनेकबार। दिया जाता है वह प्रसंग पाकर अजैनों कीर्तिदान । जैसे को भी जैन राजाभोज .. शासन की दीन प्रभावना हेतु पंच दान दिया था। महाखतधारी दूध्खी-अनाथ आदि को देखकर साधु-साध्वीजी दयाभाव पूर्वक जो भगवंतों को जो निर्दोष दिया जाता है वह अनुकंपा आहार दिया जाता है वह दान । (प्रभु वीर ने सुपादान है। गुरू हमें सही रास्ता (मार्ग) ब्राह्मण को अर्थ दिखानेवाले है ऐसे उपकारी सद्गुरू भगवंतों को। वस्त्र दान दिया दिया जाने वाला सुपात्रदान मोक्ष हेतु होता है। था।) जैसे अभयदान जैसे संगम, जगडूशाह चन्दना ... भय से दुखी जीवों को भयमुक्त सेठ करना । प्राणों की रक्षा करना अभयदान है। जीव के प्राणों को नष्ट करना हिंसा है। अभय देनेवाला सबकुछ देता है। प्राण लेनेवाला सबकुछ हरण करता है । 'आत्मवत् सर्व भूतेषु' जैसे हमें प्राण प्रिय है वैसे सभी जीवों को भी प्राण प्रिय है तथा सुख की तमन्नावाले हैं। जैसे रानी ने चोर को अभयदान दिया। अभयदान तथा सुपात्रदान से मोक्ष गति की प्राप्ति होती है। शेष तीन दान संसार संबंधित सुख-यश-कीर्ति आदि दिलानेवाले है। शील धर्म महाव्रत - अणुव्रत आदि का पालन करना शीलधर्म है। व्रत रक्षा हेतु - शील रक्षा हेतु मृत्यु भी श्रेष्ठ है, वीरता है किंतु उसका भंग हमे कतई नहीं करना चाहिए। जैसे सुदर्शन आदि ...।। Locusto m acoccordGOOOOOOOOOOOOOOOOOODUTTARAKHANDOODHARTOONSIDHATHIDEVIODURATIDEODAY SOCIDDISODDOORDAROGROOTORADUADITOOGHDOOOGLUSTAUGUSAPage Navigation
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