Book Title: Adhyatmik Gyan Vikas Kosh
Author(s): Rushabhratnavijay
Publisher: Rushabhratnavijay

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Page 13
________________ NADU लोक स्वभाव विश्च 14 राजलोकमय है, दुनिया से बहार अलोक है, विश्व में उर्वलोक - मध्यलोक तथा अधोलोक आया हुआ है। दुनिया का आकार कैसा? तुम खड़े रहो, दो पैर चौड़े करो और दोनों हाथों को कमर पर टिका दो। संपूर्ण जगत का चिंतन करना । विश्च छः द्रव्यों के समूह से अवस्थित है। देव-नारकमनुष्य तथा पशुजहाँ रहे हुए है। लोक की विचारधारा हमारे मन को एकाग्र बनाती है। विश्व का चिंतन हमें बोध प्रदान करता है सम्यक बोध से शोध होती है, शोध से शुद्धि होती है। लोक को किसी ने बनाया नहीं है, किसी ने टिका के रखा नहीं है तो न कोई इसका नाश कर सकता है। अनादि अनन्तकाल से है और रहेगा। जैसे शिवराजर्षि को विभंग ज्ञान से विपरित ज्ञान हा था प्रभु ने सही तत्त्व दिखाया। बोधि दुर्लभ प्रभु ऋषभ ने सभी पुत्रों को समझाया कि यह धर्मरत्न की प्राप्ति बड़ी मुश्किल से होती है। धन-राज्य से कभी तृप्ति नहीं होती ... इस रत्नत्रयी को ही स्वीकार करने हेतु उद्यम करना चाहिये। अन्य देवी देवता को छोड़कर वीतराग प्रभु पर श्रद्धा रत्नत्रयीकी प्राप्तिदर्लभ संसार में विविध गतियों में, चौरासी लाख योनियों के अंदर भटकते जीव को सद्धर्मरत्नों की प्राप्ति दुर्लभ है। सम्यग् दर्शन, सम्यग् ज्ञान और सम्यग् चारित्र की प्राप्ति अनंत पुण्य राशि एकत्रित होने पर होती है। मिथ्या दृष्टि मंद कषाय से नवग्रैवेयक तक | जाते है कितु यथार्थ स्वानुभव करके 'समझा नहीं अत: बोधि प्राप्ति दुर्लभ है।। धर्म दुर्लभ धर्म दुर्गति में गिरते प्राणी को जो बचा लेता है तो साथ में सद्गति में स्थापित करता है।। धर्म इस जगत में उत्कृष्ट मंगल है, धर्म हमारे लिए कल्याणकारी है धर्म सभी जीवों का परम हितकारी है धर्म वृक्ष जीव धर्म की शरण से मोक्ष सुख को प्राप्त करता है। धर्म के प्रभाव से सूख की प्राप्ति तथा अनुकूलताएं मिलती है। संसार में जितना। भी सुख मिल रहा है वह पूर्व भव में किया हुआ धर्म का प्रभाव समझना चाहिए। ___एक बार गँवाने पर पुनः मिलना दुर्लभ है। ROMANOOOOOOOOOOO

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