Book Title: Adhyatmik Gyan Vikas Kosh Author(s): Rushabhratnavijay Publisher: Rushabhratnavijay View full book textPage 6
________________ जमेन्त्री भावना तीर्थ कर परमात्मा की मैत्री भावना उच्च पराकाष्ठा की होती है, मेघ कुमार ने पूर्व के हाथी के भव में ढाई दिन तक पाँव ऊँचा जगत के तमाम जीवों को तारने की भावना से युक्त होते हैं। रखकर एक छोटे से खरगोश को जान के जोखम से बचाया था। धर्म ध्यान को पुष्ट करने हेतु चार प्रकार की भावनाएं है, जिसमें सभी जीवों के प्रति मैत्री भाव रखना किसी को भी शत्रु नही मानना तथा अवसर आने पर कहर शत्र पर भी उपकार करना यह प्रथम मैत्री भावना है। हम किसी को जीवन देनहीं सकते तो किसी काजीवन लेने का अधिकार भी हमें नहीं है। पूर्व में अनन्त काल तक अनन्त जीवों के साथ हमने अनन्त समय निगोद में बिताया है तो अब छोटी सी जिंदगी में शत्रूभाव क्यों धारण करें ? हमारे संबंध उपयोगिता के नहीं अपितु आत्मीयता के होने चाहिए। शांत-प्रशांत साधक आत्मा के प्रभाव से वैरी पशु-पंखी भी शांतिनाथ अपने वैरभाव भूल जाते भगवान ने है। जैसे बलभद्र पूर्व के मेघरथमूनि-जंगली राजा के भव पशु। में शिकारी पंखी से कबूतर की रक्षा हेतु अपना पूरा शरीर न्यौछावर कर दिया था। LPORN w wsagro wouTURDURanguaTOSTEDOTOCTOTTOUCOURSCITOURISONGAROOPage Navigation
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